बसंत
बसंत आया
पुरवा साथ लाया
विरह की अग्नि जगा
अंग अंग मादक कर गया
अंग लिपटन की चाह
साँसे धोकनी सी चलें
मदहोश हैं आँखें
नींद काफूर है उनमें
बिस्तर काँटों की सेज सा चुभे
इंतज़ार है
प्रेयसी को अपने प्रेमी का
— ब्रजेश गुप्ता
बसंत आया
पुरवा साथ लाया
विरह की अग्नि जगा
अंग अंग मादक कर गया
अंग लिपटन की चाह
साँसे धोकनी सी चलें
मदहोश हैं आँखें
नींद काफूर है उनमें
बिस्तर काँटों की सेज सा चुभे
इंतज़ार है
प्रेयसी को अपने प्रेमी का
— ब्रजेश गुप्ता