कविता

बसंत

बसंत आया

पुरवा साथ लाया

विरह की अग्नि जगा 

अंग अंग मादक कर गया 

अंग लिपटन की चाह

साँसे धोकनी सी चलें 

मदहोश हैं आँखें 

नींद काफूर है उनमें 

बिस्तर काँटों की सेज सा चुभे 

 इंतज़ार है

प्रेयसी को अपने प्रेमी का

— ब्रजेश गुप्ता

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020