नारी
नारी हूं
नर की सहचरी
ईश्वर की अनुपम कृति
मां की हमदर्द
पिता की मान
मायके की शान
दैवीय रूप में
पूजी जाती हूं
कन्या रूप से लेकर
सयाने उम्र तक, पूजनीय हूं
नहीं होता मेरे बिना
कोई भी यज्ञ
मैं ही शिवांगी
मैं ही विष्णुप्रिया
मैं ही कृष्ण की राधा
सीता रूप में मैं ही
धरती पर अवतरित हुई
जब -जब देश पर अन्याय
अपराध बढ़ा, संघर्ष का कारण
बन अवतरित हो निराकरण किया
मेरे ही कोख से जन्मे
तुम भेड़िए रूपी पुरूष
शर्मसार करते हो,हमें
मैं ही रौंदी जाती हूं
छली जाती हूं
कोठे पर बैठायी जाती हूं
कभी हमारे ऊपर एसिड
फेंकी जाती है
कभी बलात्कार कर
जला दी जाती हूं
कभी मजबूर हो आत्महत्या
करती हूं स्वंय
आखिर क्यों?क्यों?क्यों?
देखा है देवी रूप सब ने
काली बन जिस दिन उठूंगी
उस दिन देख पाओगे
हम सब का प्रचण्ड रूप
नारी न पहले अबला थी
न अब है,शक्ति स्वरूपा हैं
सहन शक्ति जिस दिन
खत्म होगा,उस दिन
त्राहि-त्राहि करेगी दुनिया।
— डॉ. मंजु लता