हास्य व्यंग्य

ये अपने बस की बात नहीं

बहनों और बहनों.. अब वक्त आ गया है कि आप कुछ करो बहुत सह ली मर्दों की गुलामी, बहुत उठा लिए उनके नखरे ,बहुत बन लिए उनके पैरों की जूती…पर कब तक ..उठो ..जागो..अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होओ.. तोड़ दो यह परतंत्रता की बेड़ियां, आजाद हो जाओ घर की चारदीवारी से,बाहर निकलो अपना अस्तित्व पहचानो ,अपनी पहचान बनाओ.. यह पूरा आकाश है तुम्हारे लिए.. उड़ो ..अपनी कल्पना अपने कार्यों को पंख दो.. घर की सेवा से बढ़कर है समाज सेवा.. वह करो अनाथ और बेसहारा वृद्धों की सेवा करो.. देखो इस समाज में कितने दुखियारे, बेबस ,लाचार, कमजोर लोग हैं ..इन्हें सहारा दो, दुलार दो देखो फिर कितनी दुआएं मिलती हैं, कितना सुकून मिलता है कितनी शांति मिलती है..” सौम्या बड़ी प्रभावित हुई ..इस महिला से तो एक बार मिलना पड़ेगा क्या बोलती है;! कितना दर्द है इस के दिल में दीन दुखियों के लिए.. मैं इस से मिलूंगी तो मैं भी कुछ कर पाऊंगी और मंत्रमुग्ध सौम्या ने मन ही मन सोच लिया अब से वह भी समाज सेवा शुरू करेगी घर से बाहर निकल लोगों का दुख दर्द सुनेगी दूर करने की कोशिश करेगी, उनके जरिए अपनी पहचान बनाएगी ,आखिर उसका भी कोई अस्तित्व है या नहीं..’ उसी सम्मोहन में वह घर में दाखिल हुई और रोहन से बोली, “सुनो मैंने डिसाइड कर लिया है कि अब से मैं भी समाज सेवा करूंगी..”

रोहन ने मुंह उठाकर उसे देखा, “पहले घर सेवा और पति सेवा तो कर लो बाद में करना समाज सेवा…” सौम्या चिढ़ गई, “जिंदगी भर यही करवाते रहना मुझसे… बांध कर रखना उम्र भर  इस घर की चारदीवारी में…घर की, आप की सेवा करते करते तो यह हालत हो गई मेरी..अब थोड़ी सी खुद कर लो अपनी सेवा अपने घर की सेवा तब पता चलेगा कैसे की जाती है सेवा आए बड़े पहले पति सेवा तो कर लो..”

रोहन क्यों चुप रहता, “ओहो.. ऐसी कौन सी सेवा कर दी है तुमने मेरी ऐसा क्या करवा लिया मैंने मेरे घर में.. वही करती हो जो सभी बीवियां करती है कोई अनोखा काम तो नहीं किया..”

 सौम्या और चिढ़ गई, “सब पका पकाया मिल जाता है ना इसलिए अनोखा काम नहीं लग रहा जब खुद करना पड़ेगा ना तब पता चलेगा कितना अनोखा है अब तो और नहीं करूंगी.. संभालो अपना घर बार बच्चे.. करो सेवा मैं तो अब समाज सेवा ही करूंगी समझे! मुझे भी चाहिए आजादी की सांस, खुला आसमान ..अब नहीं रहूंगी मैं घर की कैद में.. अब मुझे बाहर निकलना है तो निकलना है बस..”

बोलकर वह तो धमकती अंदर चली गई रोहन वहीं बैठा सोचता रह गया कि अल्लाह जाने क्या होगा आगे.. सौम्या दूसरे ही दिन पहुंच गई समाजसेवी मैडम के यहां.. मैडम ने बड़ी गर्मजोशी से उसका स्वागत किया और उसे अपनी संस्था से जोडने के लिए सदस्यता फीस ली और समाज सेवा के कामों में आगे बढ़ाने के लिए उसे लेकर एक अनाथ आश्रम में पहुंची.. बड़ी खुश खुश सौम्या बच्चों के लिए कुछ करने का उत्साह लेकर वहां पहुंचती..पर अनाथ आश्रम के बच्चे देख कलेजा मुंह को आने लगा.. किसी तरह हिम्मत कर आगे बढ़ी.. एक साफ-सुथरे बच्चे को देख उसे प्यार किया.. वह बुरी तरह चिपक गया, “आप मुझे रोज ऐसे ही प्यार करेंगी, यहां रोज आएंगी, रोज मुझे यह बिस्किट चॉकलेट देगी..” एक तरफ उसकी बातों का दर्द दूसरी तरफ साड़ी खराब होने की चिंता.. सौम्या को समझ नहीं आया कि क्या करे.. निकलने लगी तो तीन-चार और बच्चों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया, “आप हमें हमारी मां के पास ले जाएंगे, हमें हमारे घर पहुंचा देंगे ! हमारा यहां मन नहीं लगता मां की बहुत याद आती है आप ले चलिए ना हमें वहां..” सौम्या हैरान-परेशान क्या करें ? क्या जवाब दे ? कहां से लाए इनकी मां ? रोजाना भी तो संभव नहीं.. एक ही जगह थोड़ी ना रोज विजिट दी जाएगी और जगह भी तो जाना है.. किसी तरह समझा-बुझाकर उन्हें परे धकेल कर बाहर निकली बाहर आकर गहरी गहरी सांस ली…साथ आई संचालिका तथा अन्य महिलाओं ने संभाला.. इतना कमजोर होना ठीक नहीं अभी तो न जाने कितने और सामने आएंगे.. हमारा काम सिर्फ कपड़े खिलौने बिस्किट चॉकलेट देना है और कुछ नहीं बाकी वो जाने और उनके आश्रम के संचालक जाने चलो..”

सौम्या हैरान उसका मुंह देखती रही..उस दिन तो न जाने क्या-क्या बोल रही थी इन के दुख दर्द को दूर करने के लिए और आज ! घर आकर भी सौम्या की निगाहों में वह बच्चे घूमते रहे एक बेचैनी सी हावी रही.. दूसरे दिन महिला आश्रम जाना था.. वहां की अलग गाथा.. बुझी बुझी त्रस्त सी महिलाएं अपने काम में व्यस्त थीं.. उन लोगों पर एक निर्लिप्त दृष्टि डाल अपने काम में लगी रहीं.. वहां की संचालिका साथ आईं महिलाओं से बातें करने लगी, “आप लोगों की बड़ी मेहरबानी है, आप लोगों की वजह से ही आश्रम चलता है.. निराश्रित महिलाओं का कुछ भला हो जाता है..” उसने काम करती एक महिला को बुलाया “मैडम को बताओ तुम्हें यहां कोई तकलीफ हो तो..”  उसने एक सहमी सी दृष्टि संचालिका पर डाली और रटे शब्दों में बोली में, “हमें यहां कोई तकलीफ नहीं है हम यहां आराम से हैं.. संचालिका बहन जी हमारा बहुत ध्यान रखती हैं.” “ठीक है तुम जाओ..” 

आंसुओं को पलकों में ही छुपाती वह चली गई सौम्या चुपचाप देखती रही.. वहां से निकली पर बेबस आंखें दूर तक पीछा करती रहीं. उसका जी मिचलाने लगा.. साथ आई महिलाएं आपस में खुसर पुसर करने लगीं, “यह बड़े घरों की औरतें इन्हें भी भूत सवार होता है समाज सेवा करने का.. अरे काहे की समाज सेवा अखबारों में नाम व फोटो छपवाने का क्रेज रहता है.. समाज सेवा का ‘स’ भी पता नहीं होता इन्हें.. सब बड़े लोगों के चोंचले हैं.. इतने कमजोर दिल की भी है.. पता नहीं क्यों चली आती हैं समाज सेवा करती, समाज सेवा करती दो विजिट में देखो क्या हालत हो गई..” 

“अरे छोड़ ना.. दो दिन का चस्का,4 दिन की चांदनी है अभी 2 दिन में भूत उतर जाएगा तो आप ही बैठ जाएगी वापस अपने घर.. बहुत देखी है ऐसी समाजसेवी ..छोड़ ना ..सौम्या सुनी अनसुनी कर बैठी रही …अगले दिन तेज बारिश हो रही थी मैडम का फोन आया शहर से 12 किलोमीटर दूर एक वृद्धा आश्रम है वहां विजिट देना है ..आज गाड़ी नहीं है तो अपनी कार ले आना.. तुम्हारी कार से जाएंगे ..’

“ठीक है” कहकर सौम्या रोहन की तरफ पलटी आप बाइक से चले जाओ मुझे आज कार लगेगी वृद्धा आश्रम जाना है.. और थोड़े पैसे भी दे देना पेट्रोल भरवाना पड़ेगा ..रोहन ने हाथ खड़े कर दिए, “आज तो मुझे बॉस के साथ मीटिंग में जाना है रॉयल रेस्टोरेंट..बाइक से बॉस को लेकर कैसे जाऊंगा.. समाज सेवा का शौक तुम्हें है मुझे नहीं.. इतना ही दर्द उमड़ रहा है तो अपना पर्स ढीला करो,”

रोहन ने फाइलों के साथ कार की चाबी उठाई और निकल गया.. सौम्या ने मिन्नतें करते हुए समाज सेविका से माफी मांगी पर उन्होंने कह दिया’समाज सेवा करने निकली हो तो इन सब बातों का भी ध्यान रखो.. गाहे-बगाहे गाड़ी पैसों की जरूरत पड़ ही जाती है ..थोड़ा बहुत खर्चा भी करना ही पड़ता है.. नाम कमाने के लिए दाम लगाना बहुत जरूरी है..’ सौम्या का मूड खराब हो गया.. नहीं गई.. अगले दिन तेज बारिश हो रही थी मैडम का फोन आया चलना है सौम्या ने बारिश देखी, मना कर दिया ऐसी बारिश में कोई घर से बाहर निकलता है रोहन ने चुटकी ली, “घर की चारदीवारी से बाहर जाओ खुले आसमान में उड़ो,कैद में मत रहो..” सौम्या ने आंखों से अग्नि बाण छोड़े ,”ज्यादा मजाक उड़ाने की जरूरत नहीं है जब मन करेगा जरूर जाऊंगी अभी मेरा मूड नहीं है..” और वह जान गई कि यह समाज सेवा उसकी बात नहीं है अपने बच्चे अपना घर संभाल ले वही बहुत है इतना दुख दर्द उससे समेटा नहीं जाएगा.. इनका दुख दर्द भले दूर हो जाए हो या नहीं हो पता नहीं पर इनके चक्कर में मैं जरूर दुखी हो जाऊंगी..’ और रोहन सोच रहा था यह समाज सेवा का मोह त्याग भले आज के लिए ही पति सेवा से मोह लगाकर इस मौसम में गरमा गरम पकोड़े खिला दे तो मजा आ जाए.. उसकी समाज सेवा के चक्कर में इतने दिनों से कच्चा पक्का खा कर मन ऊब गया था.. सौम्या की समाज सेवा के बिना समाज जरूर चलता रहेगा पर उसकी घर सेवा के बिना यह घर हिलेगा भी नहीं. …

— डॉ ममता मेहता 

डॉ. ममता मेहता

लेखन .....लगभग 500 रचनाएँ यथा लेख, व्यंग्य, कविताएं, ग़ज़ल, बच्चों की कहानियां सरिता, मुक्ता गृहशोभा, मेरी सहेली, चंपक नंदन बालहंस जान्हवी, राष्ट्र धर्म साहित्य अमृत ,मधुमती संवाद पथ तथा समाचार पत्रों इत्यादि में प्रकाशित। प्रकाशन..1..लातों के भूत 2..अजगर करें न चाकरी 3..व्यंग्य का धोबीपाट (व्यंग्य संग्रह) पलाश के फूल ..(साझा काव्य संग्रह) पूना महाराष्ट्र बोर्ड द्वारा संकलित पाठ्य पुस्तक बालभारती कक्षा 8 वी और 5वी में कहानी प्रकाशित। पूना महाराष्ट्र बोर्ड 11वीं और 12वीं कक्षा के लिए अभ्यास मंडल की सदस्य प्रस्तुति ..सब टीवी पर प्रसारित "वाह वाह क्या बात है" और बिग टीवी पर प्रसारित "बहुत खूब" कार्यक्रम में प्रस्तुति दूरदर्शन आकाशवाणी से काव्य पाठ संगोष्ठियों शिबिरो में आलेख वाचन ,विभिन्न कविसम्मेलन में मंच संचालन व काव्य पाठ दिल्ली प्रेस दिल्ली तथा राष्ट्रधर्म लखनऊ द्वारा आयोजित व्यंग्य प्रतियोगिता में सान्तवना ,द्वितीय व प्रथम पुरस्कार ।