हास्य व्यंग्य – भीतर की घंटी
बात उन तरुणाई के दिनों की है ,जब मैने शादी के लिए विज्ञापन निकलवाया था क्योंकि उन दिनों मैं “वर” हुआ करता था” ? मुझे बचत करने वाली कन्या चाहिए थी। मुझे सफलता मिली । एक कन्या का शीघ्र ,और गजब का रिप्लाई आया। “मैं अच्छी बचत कर लेती हूं ,क्योंकि मैं बिस्किट पर चिपकी चीनी से भी चाय बना लेती हूं।”
मैंने उसी की हित में निर्णय ले लिया। बचत वाली यही वधू ही आगे चलकर के मेरी पत्नी सिद्ध हुई अच्छी है, गुणी है।अब उसका हौसला भी कमाल का है, ।इंसान के जीवन का भरोसा तो एक पल का नहीं है और वो अचार पूरे साल का बना लेती हैं। यह अलग बात है कि पिछले चार दशको से मैं पत्नी की एक समस्या से पीड़ित हूं।वह हर बार किचन में जाती है और लौटकर मुझसे पूछती है -आज सब्जी क्या बनाऊं? अब मैं उसके इसी प्रश्न की समस्या से पीड़ित हूं ।उसको क्या बताऊं.। मैं तो करेला से पनीर तक सब सब्जी, पसंद करता हूं।उसको जो सब्जी बनाना है बनाएं । प्रश्न करते हुए जाने अनजाने उसके हाथों में बेलन और हाथों में आटा भी होता । बेलन देखकर मैं यही सोचता हूं -बेलन भी एक ऐसा विकसित यंत्र है, जिससे रोटी गोल होती है और पति सीधा। मैं समझता हूं -“आज सब्जी क्या बनाऊं?”इस समस्या को हर पत्नी की” राष्ट्रीय समस्या “घोषित कर देना चाहिए। जो सब्जी बन जाती है मैं रिस्पेक्ट से खा लेता हू ।किससे कहूं? कैसे कहूं?बीवी से ज्यादा रिस्पेक्ट तो मुझे उसके अलमारी के कपड़े देते हैं ,जब भी खोलता हूं,बेचारे कम से कम दो-तीन तो पैरों में गिर तो जाते हैं।
उस दिन की बात है घर से बाहर निकलते समय पत्नी बोली- “ऊपर वाले के सामने हाथ जोड़कर घर से निकला करो, सारे काम अच्छे होंगे।”
मैंने कहा- मैं नहीं मानता । शादी वाले दिन भी हाथ जोड़कर ही घर से निकला था। वह शून्य में ताकने लगी।हम हिंदी भाषा के लोग हैं घर में खासी हिंदी बोलते हैं ।मैं समझता हूं कि हिंदी बहुत शक्तिशाली भाषा होती है ,क्योंकि जैसे ही पत्नियां कहती है-” हिंदी में समझाऊं क्या ?” सारे पति समझ जाते हैं। उस दिन हम ट्रेन में सफर कर रहे थे ।सामने बनारस जा रही माता जी ने पूछ लिया -कहां के हो बेटा?
मैंने कहा -, अब मैं कहीं का नहीं रहा माताजी, मेरी शादी हो गई है। अब बस घर का ही होकर रह गया हूं। माताजी बोली- जुग जुग जियो बेटा।
कुछ दिन पहले की ही बात है मेरे एक अजीज मित्र ने ने मेरे पेट को देखते हुए टोक ही दिया- यार, तेरी तोंद निकल रही है। अब उसको मैं कैसे बताऊं कि यह तोंद निकालने का कारण है -पत्नी का डर। हर दोस्तों के साथ पार्टी करो फिर घर आकर बीवी के डर और तनाव से बचने, दोबारा खाना खाओ। सच इसी तनाव से पेट तनता जा रहा ।उसने कहा -मित्र तनाव भी दूर हो जाएगा और शांति भी आएगी ।फिर उसने एक विचित्र टिप्स दे दिया । दोस्त ने कहा- पत्नी कुछ कहे तो गर्दन दो बार ऊपर नीचे करें, फायदा होगा इससे आपका जीवन खुशहाल रहेगा। भूल से भी गर्दन दाएं -बाएं न करें यह जानलेवा साबित हो सकता है। उसका टिप्स मुझको पसंद आया मैं मुस्कुरा दिया और कहा -ट्राई करूंगा ।
कल मन मेरा बड़ा दुखी था क्योंकि बीबी ने पच्चीस हजार की साड़ी घर ले आई थी । कल मैं टेंशन में था किन आज थोड़ी तसल्ली है क्योंकि वही साड़ी आज वह घूम-घूम कर मोहल्ले वालों को दिखा रही है। अब पड़ोसी भी पच्चीस हजार ढीलेंगे। मेरी पीड़ा तब कम होगी ।
उस दिन , पत्नी मेरे शर्ट को प्रेस कर रही थी । मैंने कहा शर्ट को प्रेस करने के पहले उल्टी कर लेना। वह तुनक गई । अपने पेट की तरफ इशारा करते हुए बोली क्या गजब करते हो – मेरा हाजमा दुरुस्त है। क्या उल्टी सीधी बात कर रहे हो । देर तक जद्दोजहद करने के बाद उसको मेरी बात समझ में आई।
यह अच्छी बात है कि हर मंगलवार को मंदिर दर्शन करने की उसकी धार्मिक आदत है । एक बार वह मेरे साथ मंदिर गई मन्नत का धागा बांधने के लिए हाथ ऊपर उठाया फिर कुछ सोच कर नीचे कर लिया। मैंने पूछा, यह क्या मन्नत क्यों नहीं मांगी ? वह बोली मांगने ही वाली थी कि -हे ईश्वर आपकी तमाम मुश्किलें दूर कर दे, फिर सोचा कहीं इस मन्नत के चक्कर में मुझ पर कोई मुसीबत न आ जाए ,यही सोचकर कोई मन्नत नहीं मांगी। उसकी बात सुनकर मैं देर तक दार्शनिकों की तरह शून्य में ही निहारता रह गया। तभी मंदिर की घंटी बजी,। परंतु मुझको अपने भीतर की घंटी ही सुनाई दे रही थी।
— सतीश उपाध्याय