स्वयं की कर पहचान
आत्मा की है सम्पत्ति,दर्शन, चरित्र और ज्ञान,
अपने अन्दर झांक कर,स्वयं की कर पहचान।
स्वयं की कर पहचान,कि कैसे भूल गया है,
सत्पथ को क्यों छोड़ के,ऐसे भटक रहा है।
“पाठक” की यह विनय, जीवन शुद्ध बनाले,
आत्मज्ञानी होकर के,अपने लक्ष्य को पाले।
— डा. केववकृष्ण पाठक