जिंदा होने का सबूत
जिंदा होने का सबूत
“नमस्ते मैनेजर साहब।”
“नमस्ते अंकल जी। कैसे हैं आप ?”
“बढ़िया हूँ बेटा।”
“कैसे आना हुआ आज अंकल जी ?”
“बेटा, जीवित होने का प्रमाण देने आया हूँ।”
“ठीक है अंकल जी। लाइए जीवन प्रमाण-पत्र दे दीजिए।”
“प्रमाण-पत्र ? हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े-लिखे को फारसी क्या ? मैं खुद खड़ा हूँ आपके सामने। इससे बड़ा और प्रमाण क्या हो सकता है ?”
“देखिए अंकल जी, ऑफिसियल कामकाज ऐसे नहीं होते. पेंशन पाने के लिए आपको जीवन प्रमाण-पत्र किसी भी एक बड़े अधिकारी से सत्यापित कराके जमा कराना पड़ेगा।”
“क्यों भई ? पिछले 9 साल से मैं आपके बैंक में लगातार आ रहा हूँ। आप ही क्यों, इस बैंक के लगभग सभी लोग मुझे पहचानते हैं। आप स्वयं एक बड़े अधिकारी हैं। फिर…”
“देखिए अंकल जी, आप हम लोगों के पर्सनल रिलेशनशिप को ऑफिसियल रिलेशनशिप से मत जोड़िए.”
“फिर क्या करूँ मैं ? आप ही बताइए.”
“आप अपना जीवन प्रमाण-पत्र किसी उच्च अधिकारी या जन प्रतिनिधि से सत्यापित करवा कर जमा कर दीजिए।”
वे सोचने लगे कि यह कैसी विडम्बना है, जिस बैंक के लगभग सभी अधिकारी-कर्मचारी उसे पिछले नौ साल से उनको जानते और मानते हैं, उनके सामने साक्षात खड़ा होना कोई मायने नहीं रखता. उसे जीवित होने का प्रूफ देने के लिए प्रमाण-पत्र देने पड़ेंगे।
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़