लघुकथा – सेल्फी ज़ोन
रेणु और उसकी सहेलियां उस विवाह समारोह में सजी-धजी हुईं सेल्फ़ी ज़ोन ढूंढ रही थीं। विवाह की रिसेप्शन पार्टी शानदार थी। हर तरफ बिजलियों की जगमगाहट थी पर सेल्फी ज़ोन कहीं नजर नहीं आ रहा था।
“आजकल तो हर छोटे -मोटे समारोह में सेल्फी ज़ोन बनाया जाता है पर यहां क्यों नहीं है?रेणु अपनी सहेलियों से कह रही थी। तभी मेहमानों का स्वागत करते हुए रेणू को दूल्हे के पिता दिखे।रेणू ने उनसे कहा-“अंकलजी नमस्ते! विवाह का रिसेप्शन तो शानदार है पर आपने यहां पर सेल्फी ज़ोन नहीं बनवाया है?आजकल तो सबसे अधिक इसका चलन है। सेल्फी ज़ोन के बिना यहां का सजावट अधूरा लग रहा है।”
दूल्हे के पिता ने कहा-“हां बेटे, सेल्फी ज़ोन का चलन तो आजकल हर जगह है। देखो न, आज आदमी कितना बेचारा और अकेला है कि वो खुद ही अपनी फ़ोटो खींचता है।यह मुझे अच्छा नहीं लगता और एक बहुत दुःख भरी बात यह है कि इसी सेल्फी के चक्कर में मेरा बड़ा बेटा नदी में गिरकर बह गया और हम सबसे हमेशा के लिए बिछुड़ गया।” यह कहते हुए उनकी आंखें छलछला आईं।
रेणू और उसकी सहेलियां यह सुनकर सकते में आ गईं।
— डॉ. शैल चन्द्रा