लघुकथा – करवा चौथ
आज पुनिया पूरे सज-धज के काम पर आई थी।ऐसे तो रोज अस्त-व्यस्त सी आ जाती थी ।
मैंने उससे पूछा, क्यों री पुनिया,आज तो तू बड़ी सजी-धजी है क्या बात है?
उसने मुस्कुराते हुए कहा-“दीदी,आज करवाचौथ है न ।
अच्छा ,पर ये बता तेरा घरवाला तो दूसरी औरत के पास रहता है।तेरे पास तो कभी आता भी नहीं है फिर भी तू उसके लिए करवाचौथ का व्रत रखती है?
उसने शरमाते हुए कहा-“तो क्या हुआ मेम साहब, किसी के पास रहे पर सलामत रहे।उनको मेरी उमर लग जाये।वो है तो मेरा सुहाग है ।हर स्त्री चाहती है कि उसका सुहाग अमर रहे।बस वो सुखी रहे।मैं यही कामना करती हूं।”
यह सुनकर मैं आश्चर्य चकित रह गई।
— डॉ. शैल चन्द्रा