कविता
जो जलाना है तो तुम
जला दो किसी का अश्रु-सागर।
जो रंगना है रंग तो तुम
रंग डालो घृणा और द्वेष को।
जो फैंकना है पानी तो तुम
फैंक के ढहा दो दिलों की दीवारें।
जो गाने हैं गीत तो तुम
गा लो गीत मिलकर चरैवेति के।
जो उडाना है अबीर तो तुम
उड़ा दो खुशियों का अबीर।
मन की पिचकारी में भर के
प्रेम-ख़ुशी-हिम्मत-दया
आज खेल लो होली को तुम।
— डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी