ग़ज़ल
तुझको जो करना है, करना है मौला
हम इंसानों के वश में क्या है मौला
हमने देखे है मुर्दे जिंदा होते
सब तेरी रहमत का जलवा है मौला
हमने रखा दर्पण जैसा जीवन को
दर्पण भी तो आखिर शीशा है मौला
तू जो मुझमें तू है बस वो ही सच है
बाकी सब मिथ्या है दोखा है मौला
खुदगर्जी है तो कायम है रिश्ते भी
वरना किसका कोई अपना है मौला
इंसां भेजा था, लोटूँगा इंसां ही
मेरा तुझसे इतना वादा है मौला
— सतीश बंसल