कविता

चुनाव

देश में चुनाव हुआ। प्रजा में तनाव हुआ। 

अश्व – गधा मंडी में खूब मोलभाव हुआ। 

साँप और नेवले में आत्मिक लगाव हुआ। 

ऊन कतराने का भेड़ों में चाव हुआ। 

पिता, पुत्र, भाई के मन में दुराव हुआ। 

लुच्चे – लफंगों का ठेके पर जमाव हुआ। 

तीन बार हार हुई फिर हरा घाव हुआ। 

कुर्सी हथियाने का और गर्म ताव हुआ 

मगरे को टिकट मिला जीता उमराव हुआ। 

रोटी के लाले थे प्रस्तुत पुलाव हुआ। 

मित्र और पड़ोसी में गहन भेदभाव हुआ। 

राजनीति – धारा का उल्टा बहाव हुआ। 

नेता में गिरगिट – सा रंग बदलाव हुआ। 

रामराज्य का सपना ठण्डा अलाव हुआ। 

— गौरीशंकर वैश्य विनम्र 

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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