दोहा-कहें सुधीर कविराय
युवा, नशा, नाश, अंजान, तन
युवा नशे में चूर हैं, अभी न उनको ज्ञान।
नशा नाश उनका करे, इससे वो अंजान।।
धन, धनिक, धनवान, कुबेर, पाखंड
धन का तुझे गुरुर क्यों, और धनिक भी लोग।
कूछ धन तू भी पा गया, शायद ये संयोग ।।
धनिक न होते लोग वे, जो धन से धनवान।
कहते उनको सब धनिक, जिस तन नही हो मान।।
धनिक उसे ही मानते, जिनको नहीं घमंड।
धन कुबेर उनको नहीं, जो करते पाखंड।।
आदि,अंत
आदि अंत को भूल जा, कर तू अपना काम।
सत्य मार्ग तू चल सदा, चमकेगा तव नाम।।
परीक्षा, परिधान
भागोगे कब तक भला,छुडा परीक्षा जान।
पास फेल हरपल सदा, जीवन का परिधान।।
रंक
मालिक होता स्वंय वह, सत्यपथ जिन मन चाह।
रंक वहीं होता बड़ा, जो भटका हो राह।।
धार्मिक
देख दिव्यता राम जी, मिट जाते सब कष्ट।
मन की हर चिंता व्यथा, हो जाती है नष्ट।।
मस्ती में डूबे सभी, आज अवध के नाम।
जिनको ऐसा लग रहा, यही बड़ा है काम।।
आदि शक्ति मैया मोरी, मुझ पर भी दो ध्यान।
बस थोड़ी कर दो कृपा, हो जाए कल्यान।।
भोले बाबा आप ही, अब कुछ करो जुगाड़।
भव बाधा मेरी कटे, अरु होवै कल्याण।।
माँ दुर्गा की कर रहे, भक्त खडे जयकार।
मां की कृपा को सभी, लेते हाथ पसार।।
दिनकर, प्रकाश, नवजीवन
प्रातकाल दिनकर सदा, जग में करत प्रकाश।
मिलती नवजीवन विमल,अरु परगति की आस।।
ताज, आज
प्रभु किरपा जो मेरे पे, है जीवन में आज ।
कौन समझ पाया भला,जो दीना सरताज।।
अगर, मगर
अगर मगर मत कीजिए, और दीजिए बोल।
मन में गांठ न बांधिए, बंधन दीजै खोल।।
अगर मगर के फेर में, नही छोड़ना हाथ।।
संकट की इस घडि में, ऐ मेरे रघुनाथ।।
रखना खुश खुद को अगर, मेरी खुशी न छीन।
ध्यान रहे मैं नहीं, यहाँ हूँ इतना हीन।।
दीप, प्रकाश, अंधकार
दीपों की दीपावली, फैलाता परकाश।
दीपक के लौ से भरा, चमक रहा आकाश।।
दीपावली की रात में, रोशन हुआ जहान।
दीपों की लड़ियां करें, नृत्य संग ही गान।।
अंधकार देगा मिटा, दीपक सूर्य समान।
दीपों के प्रकाश से, खिलिहैं सकल जहान।।
कंधा, धंधा
कंधा भी मिलता उन्हें, जिनके बड़े नसीब।
होता भान है अंत में, अर्धुक कौन गरीब।।
सब्ज बाग जन को दिखा,वोट लेत हथियाय।
राजनीति के ओट में, धंधा करते भाय।।
कंधे से कंधा मिला, चलते हैं जो साथ।
अधर में कितने ठाठ से, लेत छुड़ा वे हाथ।।
धार्मिक
मंगलमय मंगल दिवस, हनुमत जी का वार।
प्रभो राम की हो कृपा, मेरा हो उद्धार।।
भोले भाले राम जी, रामहिं पालनहार।
बनी रहे प्रभु की कृपा, हों जाऊँ भव पार।।
राम राम कहिए सभी, सुबह सबेरे आप।
मिट जाएगा आपके, जीवन का संताप।।
राम नाम जपते रहें, मन में रखकर प्रीति।
कृपा मिलेगी राम की, साफ सरल जब नीति।।
प्रेम करो तुम राम से, अवध विराजे राम।
साध पूर्ण होंगे सभी, जपो राम का नाम।।
राम अवध में आ गए, छाया नव उल्लास।
गांव गली में लग रहा,हर घर राम निवास।।
शिव बाबा अब आप ही, सुनिए मेरी पुकार।
कृपा हमें मिलती रहे, खुशियां मिले अपार।।
भोले बाबा आप ही, करते बेड़ा पार ।
हाथ जोड़े आन खड़े, जीवन तुम्ही सार ।।
भोले बाबा आप ही, रखना मेरा मान।
कर दो थोड़ी सी कृपा, हो मेरा सम्मान।।
हे भोले कर दो कृपा, भक्त खड़ा है द्वार।
दृष्टि डाल दो भक्त पर, हो जाये उद्धार।।
भोले बाबा आप कुछ,ऐसी करिए युक्ति।
मिले मुझे संसार के,भव बाधा से मुक्ति।।
ईश्वर की इतनी कृपा, हुई भोर है आज।
करके प्रभुवर अर्चना, करते दूजा काम।।
लंबी लगी कतार है, भोले के दरबार।
सबके अपने कष्ट हैं, सबके अपने रार।।
प्रथम नमन प्रभु आपको , भोर हो गई आज।
करके प्रभुवर अर्चना, करते दूजा काज।।
माँ दुर्गे की हो रही, भक्तों जय जयकार।
बरस रही मां की कृपा, ले लो हाथ पसार।।
आदि शक्ति मैया सदा, सुनिए मेरी पुकार।
रख लो मेरी लाज माँ, हो जाऊँ भव पार।।
आदि शक्ति मैया सदा, मुझ पर भी दो ध्यान।
बस थोड़ी कर दो कृपा, हो जाए कल्यान।।
मैया तेरी शक्ति से, हो जीवन कल्याण ।
तेरी अनुकम्पा रहे तो बचे रहे प्राण ।।
मैया तेरी कृपा से, हो जीवन कल्याण ।
तेरी अनुकम्पा रहे तो बचे रहे प्राण ।।
दुर्गा मैया की हो रही, भक्तों जय जयकार।
हाथ जोड़े आन खड़े, करें सुखी संसार ।।
आदि शक्ति मैया सदा, मुझ पर भी दो ध्यान।
बस थोड़ी कर दो कृपा, हो जाए कल्यान।।
दुर्गा मैया की हो रही, मंदिर में जयकार।
बरस रही माॅं की कृपा, ले लो हाथ पसार।।
मर्यादा हो राम सी, और भरत सा त्याग।
हनुमत जैसी भक्ति हो, और नहीं खटराग।।
देखी हनुमत जब सिया, नैनन से भरपूर।
राघव मुद्रिका देख के, मन में जागा नूर।।
राम कृपा से चल रहा, समय चक्र का खेल।
सब अपने ही भाग्य से, कभी पास या फेल।।
राम कृपा से राम जी, काटे चौदह वर्ष।
रावण को मुक्ति मिली, फैल गया उत्कर्ष।।
चौदह वर्ष की साधना, कठिन भरत ने कीन्ह।
लौट अवध में राम जी, धन्य हृदय कर दीन्ह।।
रावण था पापी बड़ा, चाहे जितना यार।
उसका भी श्री राम ने, कर दीन्हा उद्धार।।
देखी हनुमत जब सिया, नैनन से भरपूर।
राम मुद्रिका पाय के, मन में जागा नूर।।
गणपति बप्पा आप ही, रखना मेरी लाज।
करता हूं अब आज से, अपना नूतन काज।।
अगर मगर
अगर मगर मत कीजिए, और दीजिए बोल।
मन में गांठ न बांधिए, बंधन दीजै खोल।।
संकट की इस घड़ी में, नहीं छोड़ना साथ।
अगर मगर के फेर में, छोड़ न देना हाथ।।
रहिए खुश तुम भी मगर, मेरी खुशी न छीन।
समझ तुझे इतनी अगर, तनिक नहीं मैं हीन।।
जीवन के इम्तिहान से, कभी न मानो हार।
चलती रहेगी उम्र भर, रोज नई तकरार ।।
नित नूतन प्रकाश से , होता नया बिहान।
नव संदेशा जगत को, नवजीवन का ज्ञान ।।
होली
होली के हुड़दंग में, रहा नहीं कुछ ध्यान।
नाली में बेसुध पड़े, होकर अंर्तध्यान।।
रंग बिरंगे सब दिखें, सबसे है पहचान।
चीख चीख सबसे कहें, तू है मेरी जान।
होली के हुड़दंग में, रहा नहीं कुछ ध्यान।
नाली में बेसुध पड़े,भूले सकल विधान।
ये कैसा हुड़दंग है, मीठे सबके बोल।
सबके मुख हैं रंग गए, होली का ये खेल।।
गुझिया पापड़ कुछ नहीं, खायेंगे हम आज।
दारू के दो पैग से, होगा सारा काज।।
दारू पीकर जा गिरे, नाली में हम आज।
बीबी से तमगा मिला, होली के सरताज।।
नशा नहीं कुछ चढ़ रहा, होली में भी यार।
आओ मिलकर हम करें, आपस में ही मार।।
आनंदित होकर सभी, आज खेलें होली।
दुश्मन की भी लग रही, मिश्री जैसी बोली।।
साली ने है कर दिया, मुझको यार मतंग।
देखूंगा मैं अब यहाँ, उसके मादक अंग।।
रंग अबीर गुलाल ले, आये नेता द्वार।
दादी से कहने लगे, नाव लगा दो पार।।
दारू पीकर था पड़ा, नाली में मैं यार।
मान मुझे ऐसा हुआ, जन्नत है ये संसार।।
होली का ये पर्व है, खूब करो हुड़दंग।
खुद के कपड़े फाड़कर,दिखो यार अधनंग।।
मौका है दस्तूर भी, खूब लगाओ रंग।
बीबी भी टोके नहीं, खूब पीजिए भंग।।
रंग अबीर गुलाल से, जमकर होली खेल।
कोई इसमें पास हो, कोई होगा फेल।।
होली पावन पर्व है, मुझको दें आशीष।
जब तक सांसें चल रही, झुके नहीं ये शीष।।
मेरी है शुभकामना, संग अबीर गुलाल।
इष्ट मित्र परिजन सहित,आप रहें खुशहाल।।
हम सबको है ये पता, होली का संदेश।
रंगों के त्योहार में, मन का मिटे कलेश।।
साली सरहज ने मुझे, खूब लगाया रंग।
सूर्य किरण के साथ ही, मचा दिया हुड़दंग।।
दारू पीकर कर रहे, होली में हुड़दंग।
शर्मनाक हरकत करें, पर्व लगे बदरंग।।
होली में हुड़दंग है, अवध राम के नाम।
मस्ती में सब दिख रहे, बोलें जय श्री राम।।
रंगों का त्योहार है, सबका रखिए मान।
बीमार और बच्चों का, रखें आप सब ध्यान।।
होली का त्योहार में, साली है बीमार।
मुझको ऐसा लग रहा, सूना है संसार।।
आओ मिलकर हम करें, आज रंग में भंग।
आपस में ही सब करें, होली पर हुड़दंग।।
आज अयोध्या धाम में, दिखता अजब खुमार।
होली के हुड़दंग में, शामिल अवध कुमार।।
होली में दुर्भाव से, रहें बहुत ही दूर।
रंग अबीर गुलाल से, हो नाता भरपूर।।
मस्ती में डूबे सभी, आज अवध के धाम।
हर कोई बस जप रहा, राम राम अरु राम।।
बीत गया हुड़दंग में, होली का दिन आज।
करना है फिर भी हमें, कल से अपना काज।।
रंग अबीर गुलाल सँग, देना तुम आशीष।
पुण्य धर्म और कर्म से, ऊंचा होवै शीश।।
पावन होली पर्व में, खुशियों का है रंग।
रीति पिरीति बढाइये, गुझिया मिश्री संग।।
गले लगाकर दे सको, अपने अरि को मान।
होली के सँग आपका, बढ़ जाये सम्मान।।
बीत गया हुड़दंग में, होली का दिन आज।
करना है फिर से हमें, कल से अपना काज।।
चुनाव
नेताजी जी बेचैन हैं, आया निकट चुनाव।
हाथ जोड़कर कह रहे, पार लगा दो नाव।।
उनके चाल – चरित्र में, दिखे बड़ा बदलाव।
बप्पा ने बतला दिया, आया वत्स चुनाव।।
एनडीए को मिल रही, सीट चार सौ पार।
शोर बड़ा चहुँ ओर है, फिर मोदी सरकार।।
शोर चुनावी मच गया, गांव गली हर ओर।
नेता विनयावत दिखें, मन में रखकर चोर।।
नेताजी बेचैन हैं, आया निकट चुनाव।
पाँव पकड़ विनती करें, पार लगा दो नाव।।
नेताजी के चाल में, अंतर बहुत दिखाय।
बप्पा ने बतला दिया, दौर चुनावी आय।।
हर दल में भगदड़ मची, जनता है हैरान।
जिनकी कच्ची दाल है, माथे दिखे निशान।।
सुबह
सुबह सबेरे जागते, मोबाइल ले हाथ।
ठंडी होती चाय को, पिएं चैट के साथ।।
प्रात काल की नव किरणें, देती हैं संदेश।
उठो जल्दी योग करो,ऋषि मुनियों उपदेश ।।
सूरज हमको दे रहा, नित्य नया संदेश।
आगे हम बढ़ते रहें, और हमारा देश।।
जननी
माँ ममता की खान है, जिसको इसका ज्ञान।
जिसे नहीं इतना पता, वो मूरख अंजान।।
माता देती जन्म है, और पिलाती दुग्ध ।
सहती ढेरों कष्ट है, खोकर अपनी सूध।।
शीष झुकाकर मातु को, सदा दीजिए मान।
इतने से ही आपका, सभी करें गुणगान।।
मां के आँचल की जिसे, मिली नहीं है छांव।
जीवन भर उसने सहा, अपने दिल का घाव।।
दुनिया में सबसे बड़ा, माँ से रहना दूर।
जो वंचित होता सदा, बदकिस्मत भरपूर।।
पूजी जाती माँ सदा, श्रद्धा से तिहुलोक।
गिने नहीं वो वेदना, करे नहीं वो शोक।।
ईश्वर से होता बड़ा, जननी का स्थान।
शीश झुकाते ईश भी, देते हैं सम्मान।।
प्रथम गुरू माँ होत है, देती नव आधार।
शिष्ट बनाती वो हमें, दे अच्छे संस्कार।।
जननी धरा समान हैं , नहीं बजाए गाल।
नव जीवन निज अंश दे, रखती ऊँचा भाल।।
होता वो राजा स्वयं, जिसको सतपथ चाह ।
रंक वही होता बड़ा, जो है लापरवाह ।।
कंधा भी मिलता उन्हें, जिनके बड़े नसीब,।
अंत समय चलता पता, कौन अमीर गरीब।।
राजनीति की ओट में, धंधा करते लोग।
ऊपर से उजले दिखें, करते सुविधा भोग।।
धंधा करते लोग हैं, बिन धंधे के नाम।
असली धंधा जब खुले, कर देता बदनाम।।
कंधे से कंधा मिला, चलते हैं जो साथ।
अधर में कितने ठाठ से, वही छुड़ाते हाथ।।
आया नूतन वर्ष है, बोलो जय श्री राम।
मन में हो विश्वास तो, बनेंगे सारे काम।।
चिड़ियों की स्वर साधना, झनक न पड़ती कान।
आलस की चादर प्रबल, भंग कर रही ध्यान ।।
गुरुवर जी मेरा नमन, आप करें स्वीकार।
बस करिए इतनी कृपा, हो जाये उद्धार।।
मैं अज्ञानी मूढ़ हूँ, नहीं मुझे है ज्ञान।
पता नहीं मुझको प्रभो, छंदों का विज्ञान।।
कभी पिता को तुम सभी, करना नहीं निराश।
सुन लो उनके कटु वचन, पिता रूप आकाश।।
जीवन से मुॅंह मोड़ कर, कहाॅं छिपोगे आप।
करना है यदि पास तो, करो प्रभु का जाप।।
ये जीवन अनमोल है ,करिए सुंदर विचार ।
सोच समझ के कीजिए , कर्म बिना बेकार ।।
कविता
आदि शक्ति मैया सदा, मुझ पर भी दो ध्यान।
रख लो मेरी लाज माँ, देकर थोड़ा ज्ञान।।
कवियों का कर्तव्य है, कविता का हो नाम।
कविता के सम्मान से, कवि की कलम प्रणाम।।
कविता भी अब कह रही, हो न मेरा गान।
पीडा मेरी बढ़ रही, जब गिरता है मान।।
कविता से अब हो रहा, रोज रोज खिलवाड़।
कलम कवि की आड़ में, कविता बने पहाड़।।
कविता दिवस मनाइए, कर कविता का गान।
कलम कवि संग उच्च हो,तब कविता का मान।।
जो कविताई कर रहे, रखें कलम का मान।
ज्ञानेद्रियाँ खोल कर, सीखें नित नव ज्ञान।।
बोध नहीं साहित्य का, बहुत बघारें शान।
धनबल से ही मिल रहा, उन्हें रोज सम्मान।।
पैसे से हैं बिक रहे, रोज रोज सम्मान।
किसका कितना मान है, आपस में ही जान।।
पता नहीं साहित्य का, बांट रहे वे ज्ञान।
धनबल से जो ले रहे, रोज नया सम्मान।।
सुबह आपको नमन है, इसे करें स्वीकार।
आगे मर्जी आपकी, करिए आप विचार
सारी दुनिया व्यस्त है, फुर्सत में है कौन।
रिश्तों पर भारी पड़े, हम सबका ये मौन।।
रिश्ते जिंदा रह सकें, कोशिश करिए आप।
वरना बढ़ता ही रहे, इस समाज में पाप।।
आप मुझे करिए क्षमा, बहुत व्यस्त मैं आज।
वैसे मैं करता नहीं, ऐसा कोई काज।।
किसे पता है तनिक भी, कल भी होगा आज।
बस इतनी उम्मीद है, होंगे पूरे सब काज।।
शीष झुकाओ नित्य ही, मातु पिता के पाद।
भाएगा संसार का, मिश्री जैसा स्वाद।।
शोक सभा में आ गए, वे भी दुश्मन यार।
जिसने मेरे मौत की, माँगी दुआ हजार।।
दीपों की दीपावली, फैला मधुर प्रकाश।
दीपक के लौ से भरा, चमक रहा आकाश।।
दीपों की लड़ियां करें, नृत्य संग ही गान।।
अंधकार मिट जायेगा, दीपक सूर्य समान।
शिक्षा एक प्रकाश है, आप इसे लें जान।
आप दूर क्यों भागते, बनकर के अंजान।।
अंधकार में जब हमें, दिखे न कोई राह।
शिक्षा देती है जगा, मन में नव उत्साह।।
धमकाने बीबी लगी, दंग रह गया यार।
समझ नहीं आया मुझे, ये कैसा त्योहार।।
जीवन साथी ने कहा, छोड़ो बिस्तर यार।
आठ सुबह के बज गए, करो चाय तैयार।।
भ्रष्टाचारी जनों का, करें लोग सम्मान।
होते हैं जो निष्कपट, पाते हैं अपमान।।
ज्येष्ठ श्रेष्ठ जो लोग हैं, करें आप सम्मान।
बढ़ जायेगा आपका, इतने भर से मान।।
माँ की ममता का कभी, करिए मत अपमान।
विपदा का है मार्ग यह, रखो सदा ही ध्यान।।
उतर गया खुमार है, बीते दिन के साथ।।
लौट काम पर आ गए, जो था जिसके हाथ।।
चोरी भी अब कर रहे,कुछ तो सीना तान।
बनते बिल्कुल श्वेत हैं, दिखलाते अति शान।।
आप क्षमा कीजै मुझे, भूल करुं स्वीकार।
बस इतनी सी बात है, नहीं ठानिए रार।।
दंभ न इतना कीजिए,करिए सोच विचार।
अपने हित खातिर प्रभू, करो प्रेम व्यवहार।।
क्षणिक स्वार्थ के फेर में, नहीं किसी को भूल।
कल को रोना क्यों पड़े, बने फूल जब शूल।।
नमन करो तुम मातु को, रख मन में विश्वास।
करो प्रेम हर जीव से, बिखरेगी क्यों आस।।
सुबह सवेरे आप सब, ठंडा रखिए माथ।
रखें हृदय को शांत जब, मृदु अनुभव के साथ।।
मूर्ख दिवस
सबसे पहले मूर्ख तो, हमें बनाया यार।
इससे पहले तो कभी, किया नहीं था प्यार।।
मूर्ख दिवस पर हम बने, मूर्ख सुबह ही आज।
बीबी जब कहने लगी, उठ मेरे सरताज।।
एडमिन ने मुझको किया, ठेल ठाल उस पार।
मूर्ख बनाया फिर कहा, अप्रैल फूल है यार।।
दादी जब कहने लगीं, लड़ना मुझे चुनाव।
दादा ने भी कह दिया, सिंबल होगा नाव।।
मूर्ख बनाने के लिए, जब आये इसबार।
भौजी बाहर थी खडी,हाथ लिए पोतनार।।
नमन करूंँ मैं आपको,बंधु करो स्वीकार।
थोड़ा सा बस प्यार दो, थोड़ा लाड़ दुलार।।
मन मेरा बेचैन है, बुद्धि रही चकराय।
कोई बतला दे मुझे, किसकी है ये हाय।।
गुरुवर जी मेरा नमन, आप करें स्वीकार।
बस करिए इतनी कृपा, हो जाये उद्धार।।
सभी बड़ों को नमन है, छोटों को आशीष।
सब पर ईश्वर की कृपा, झुके नहीं ये शीश।।
लालच से है क्या मिला, करिए आप विचार।
जिसकी खातिर कर लिया, दूषित निज व्यवहार।।
नमन निवेदित कर रहा, आप करें स्वीकार।
राह दिखाएं आप जब, तब हो बेड़ा पार।।
नहीं राह मिलती मुझे, समय चक्र का खेल।
जाऊं जिसके पास मैं, देता मुझको ठेल।।
मन प्रसन्न रखिए सदा, ईश्वर को रख याद।
रहे साथ वो ही सदा, सुनने को फरियाद।।
मुझसे तो होता नहीं, देना सबको ज्ञान।
लग सकता है आपको, ये मेरा अभिमान।।
नेकी करना रोग है, आप लीजिय जान।
नेकी करके भूलना, सबसे सुंदर ज्ञान।।
आज किसी के दर्द से, रोता भला है कौन।
जिनको अपना मानते, सबसे पहले मौन।।
दुखी न होना चाहिए, चाहे जैसा हाल।
केवल होगा आपका, ये जीवन बेहाल।।
सबके जीवन में ही चले, सुख दुःख का तो दौर।
दुखी न होना चाहिए, सबका अनुभव और।।
नदी
अविरल अपने वेग से, बहे नदी स्वच्छंद।
बहती नदिया तो लगे, मोहक सी मकरंद।।
नदियां सूखी रो रहीं, ये उनका दुर्भाग्य।
हमने कब छीना भला, कभी किसी का भाग्य।।
गौमाता
कूड़ा कचरा खा रही, गौमाता जी आज।
कब किस को आता भला, सच बतलाओ लाज।।
माता गौ को बोलते, करते हो अपमान।
कुत्ते बिल्ली पालते, ,सांसत में है जान।।
सादर समीक्षार्थ दोहे🙏
समय चक्र का खेल है, हम सब हैं लाचार।
आज लगत माँ बाप हैं, हम सबको बेकार।।
सुख दुख जीवन चक्र है, मत हो यार अधीर।
आ करके चल जायेगा,कभी रहा नहि थीर।।
मत हो दुःख में दुःखी तुम,सुख पा भाव बिभोर।
इक आवत इक जात है,इस जीवन के दौर।।
किसमें ताकत है भला, सुख दुख सकता रोक।
दुखी न होना चाहिए, मत करना तुम शोक।।
पति है हिंसक शेर यदि, पत्नी होती गाय।
पडती यदि वह सामने,दिखत बहुत असहाय।।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
दोहा – कहें कविराय सुधीर ५
युवा, नशा, नाश, अंजान, तन
युवा नशे में चूर हैं, अभी न उनको ज्ञान।
नशा नाश उनका करे, इससे वो अंजान।।
धन, धनिक, धनवान, कुबेर, पाखंड
धन का तुझे गुरुर क्यों, और धनिक भी लोग।
कूछ धन तू भी पा गया, शायद ये संयोग ।।
धनिक न होते लोग वे, जो धन से धनवान।
कहते उनको सब धनिक, जिस तन नही हो मान।।
धनिक उसे ही मानते, जिनको नहीं घमंड।
धन कुबेर उनको नहीं, जो करते पाखंड।।
आदि,अंत
आदि अंत को भूल जा, कर तू अपना काम।
सत्य मार्ग तू चल सदा, चमकेगा तव नाम।।
परीक्षा, परिधान
भागोगे कब तक भला,छुडा परीक्षा जान।
पास फेल हरपल सदा, जीवन का परिधान।।
रंक
मालिक होता स्वंय वह, सत्यपथ जिन मन चाह।
रंक वहीं होता बड़ा, जो भटका हो राह।।
धार्मिक
देख दिव्यता राम जी, मिट जाते सब कष्ट।
मन की हर चिंता व्यथा, हो जाती है नष्ट।।
मस्ती में डूबे सभी, आज अवध के नाम।
जिनको ऐसा लग रहा, यही बड़ा है काम।।
आदि शक्ति मैया मोरी, मुझ पर भी दो ध्यान।
बस थोड़ी कर दो कृपा, हो जाए कल्यान।।
भोले बाबा आप ही, अब कुछ करो जुगाड़।
भव बाधा मेरी कटे, अरु होवै कल्याण।।
माँ दुर्गा की कर रहे, भक्त खडे जयकार।
मां की कृपा को सभी, लेते हाथ पसार।।
दिनकर, प्रकाश, नवजीवन
“””””””””””
प्रातकाल दिनकर सदा, जग में करत प्रकाश।
मिलती नवजीवन विमल,अरु परगति की आस।।
ताज, आज
प्रभु किरपा जो मेरे पे, है जीवन में आज ।
कौन समझ पाया भला,जो दीना सरताज।।
अगर, मगर
अगर मगर मत कीजिए, और दीजिए बोल।
मन में गांठ न बांधिए, बंधन दीजै खोल।।
अगर मगर के फेर में, नही छोड़ना हाथ।।
संकट की इस घडि में, ऐ मेरे रघुनाथ।।
रखना खुश खुद को अगर, मेरी खुशी न छीन।
ध्यान रहे मैं नहीं, यहाँ हूँ इतना हीन।।
दीप, प्रकाश, अंधकार
दीपों की दीपावली, फैलाता परकाश।
दीपक के लौ से भरा, चमक रहा आकाश।।
दीपावली की रात में, रोशन हुआ जहान।
दीपों की लड़ियां करें, नृत्य संग ही गान।।
अंधकार देगा मिटा, दीपक सूर्य समान।
दीपों के प्रकाश से, खिलिहैं सकल जहान।।
कंधा, धंधा
कंधा भी मिलता उन्हें, जिनके बड़े नसीब।
होता भान है अंत में, अर्धुक कौन गरीब।।
सब्ज बाग जन को दिखा,वोट लेत हथियाय।
राजनीति के ओट में, धंधा करते भाय।।
कंधे से कंधा मिला, चलते हैं जो साथ।
अधर में कितने ठाठ से, लेत छुड़ा वे हाथ।।
नवंबर’२०२३👆
धार्मिक
मंगलमय मंगल दिवस, हनुमत जी का वार।
प्रभो राम की हो कृपा, मेरा हो उद्धार।।
भोले भाले राम जी, रामहिं पालनहार।
बनी रहे प्रभु की कृपा, हों जाऊँ भव पार।।
राम राम कहिए सभी, सुबह सबेरे आप।
मिट जाएगा आपके, जीवन का संताप।।
राम नाम जपते रहें, मन में रखकर प्रीति।
कृपा मिलेगी राम की, साफ सरल जब नीति।।
प्रेम करो तुम राम से, अवध विराजे राम।
साध पूर्ण होंगे सभी, जपो राम का नाम।।
राम अवध में आ गए, छाया नव उल्लास।
गांव गली में लग रहा,हर घर राम निवास।।
शिव बाबा अब आप ही, सुनिए मेरी पुकार।
कृपा हमें मिलती रहे, खुशियां मिले अपार।।
भोले बाबा आप ही, करते बेड़ा पार ।
हाथ जोड़े आन खड़े, जीवन तुम्ही सार ।।
भोले बाबा आप ही, रखना मेरा मान।
कर दो थोड़ी सी कृपा, हो मेरा सम्मान।।
हे भोले कर दो कृपा, भक्त खड़ा है द्वार।
दृष्टि डाल दो भक्त पर, हो जाये उद्धार।।
भोले बाबा आप कुछ,ऐसी करिए युक्ति।
मिले मुझे संसार के,भव बाधा से मुक्ति।।
ईश्वर की इतनी कृपा, हुई भोर है आज।
करके प्रभुवर अर्चना, करते दूजा काम।।
लंबी लगी कतार है, भोले के दरबार।
सबके अपने कष्ट हैं, सबके अपने रार।।
प्रथम नमन प्रभु आपको , भोर हो गई आज।
करके प्रभुवर अर्चना, करते दूजा काज।।
माँ दुर्गे की हो रही, भक्तों जय जयकार।
बरस रही मां की कृपा, ले लो हाथ पसार।।
आदि शक्ति मैया सदा, सुनिए मेरी पुकार।
रख लो मेरी लाज माँ, हो जाऊँ भव पार।।
आदि शक्ति मैया सदा, मुझ पर भी दो ध्यान।
बस थोड़ी कर दो कृपा, हो जाए कल्यान।।
मैया तेरी शक्ति से, हो जीवन कल्याण ।
तेरी अनुकम्पा रहे तो बचे रहे प्राण ।।
मैया तेरी कृपा से, हो जीवन कल्याण ।
तेरी अनुकम्पा रहे तो बचे रहे प्राण ।।
दुर्गा मैया की हो रही, भक्तों जय जयकार।
हाथ जोड़े आन खड़े, करें सुखी संसार ।।
आदि शक्ति मैया सदा, मुझ पर भी दो ध्यान।
बस थोड़ी कर दो कृपा, हो जाए कल्यान।।
दुर्गा मैया की हो रही, मंदिर में जयकार।
बरस रही माॅं की कृपा, ले लो हाथ पसार।।
मर्यादा हो राम सी, और भरत सा त्याग।
हनुमत जैसी भक्ति हो, और नहीं खटराग।।
देखी हनुमत जब सिया, नैनन से भरपूर।
राघव मुद्रिका देख के, मन में जागा नूर।।
राम कृपा से चल रहा, समय चक्र का खेल।
सब अपने ही भाग्य से, कभी पास या फेल।।
राम कृपा से राम जी, काटे चौदह वर्ष।
रावण को मुक्ति मिली, फैल गया उत्कर्ष।।
चौदह वर्ष की साधना, कठिन भरत ने कीन्ह।
लौट अवध में राम जी, धन्य हृदय कर दीन्ह।।
रावण था पापी बड़ा, चाहे जितना यार।
उसका भी श्री राम ने, कर दीन्हा उद्धार।।
देखी हनुमत जब सिया, नैनन से भरपूर।
राम मुद्रिका पाय के, मन में जागा नूर।।
गणपति बप्पा आप ही, रखना मेरी लाज।
करता हूं अब आज से, अपना नूतन काज।।
अगर मगर
अगर मगर मत कीजिए, और दीजिए बोल।
मन में गांठ न बांधिए, बंधन दीजै खोल।।
संकट की इस घड़ी में, नहीं छोड़ना साथ।
अगर मगर के फेर में, छोड़ न देना हाथ।।
रहिए खुश तुम भी मगर, मेरी खुशी न छीन।
समझ तुझे इतनी अगर, तनिक नहीं मैं हीन।।
जीवन के इम्तिहान से, कभी न मानो हार।
चलती रहेगी उम्र भर, रोज नई तकरार ।।
नित नूतन प्रकाश से , होता नया बिहान।
नव संदेशा जगत को, नवजीवन का ज्ञान ।।
होली पर दोहे
होली के हुड़दंग में, रहा नहीं कुछ ध्यान।
नाली में बेसुध पड़े, होकर अंर्तध्यान।।
रंग बिरंगे सब दिखें, सबसे है पहचान।
चीख चीख सबसे कहें, तू है मेरी जान।
होली के हुड़दंग में, रहा नहीं कुछ ध्यान।
नाली में बेसुध पड़े,भूले सकल विधान।
ये कैसा हुड़दंग है, मीठे सबके बोल।
सबके मुख हैं रंग गए, होली का ये खेल।।
गुझिया पापड़ कुछ नहीं, खायेंगे हम आज।
दारू के दो पैग से, होगा सारा काज।।
दारू पीकर जा गिरे, नाली में हम आज।
बीबी से तमगा मिला, होली के सरताज।।
नशा नहीं कुछ चढ़ रहा, होली में भी यार।
आओ मिलकर हम करें, आपस में ही मार।।
आनंदित होकर सभी, आज खेलें होली।
दुश्मन की भी लग रही, मिश्री जैसी बोली।।
साली ने है कर दिया, मुझको यार मतंग।
देखूंगा मैं अब यहाँ, उसके मादक अंग।।
रंग अबीर गुलाल ले, आये नेता द्वार।
दादी से कहने लगे, नाव लगा दो पार।।
दारू पीकर था पड़ा, नाली में मैं यार।
मान मुझे ऐसा हुआ, जन्नत है ये संसार।।
होली का ये पर्व है, खूब करो हुड़दंग।
खुद के कपड़े फाड़कर,दिखो यार अधनंग।।
मौका है दस्तूर भी, खूब लगाओ रंग।
बीबी भी टोके नहीं, खूब पीजिए भंग।।
रंग अबीर गुलाल से, जमकर होली खेल।
कोई इसमें पास हो, कोई होगा फेल।।
होली पावन पर्व है, मुझको दें आशीष।
जब तक सांसें चल रही, झुके नहीं ये शीष।।
मेरी है शुभकामना, संग अबीर गुलाल।
इष्ट मित्र परिजन सहित,आप रहें खुशहाल।।
हम सबको है ये पता, होली का संदेश।
रंगों के त्योहार में, मन का मिटे कलेश।।
साली सरहज ने मुझे, खूब लगाया रंग।
सूर्य किरण के साथ ही, मचा दिया हुड़दंग।।
दारू पीकर कर रहे, होली में हुड़दंग।
शर्मनाक हरकत करें, पर्व लगे बदरंग।।
होली में हुड़दंग है, अवध राम के नाम।
मस्ती में सब दिख रहे, बोलें जय श्री राम।।
रंगों का त्योहार है, सबका रखिए मान।
बीमार और बच्चों का, रखें आप सब ध्यान।।
होली का त्योहार में, साली है बीमार।
मुझको ऐसा लग रहा, सूना है संसार।।
आओ मिलकर हम करें, आज रंग में भंग।
आपस में ही सब करें, होली पर हुड़दंग।।
आज अयोध्या धाम में, दिखता अजब खुमार।
होली के हुड़दंग में, शामिल अवध कुमार।।
होली में दुर्भाव से, रहें बहुत ही दूर।
रंग अबीर गुलाल से, हो नाता भरपूर।।
मस्ती में डूबे सभी, आज अवध के धाम।
हर कोई बस जप रहा, राम राम अरु राम।।
बीत गया हुड़दंग में, होली का दिन आज।
करना है फिर भी हमें, कल से अपना काज।।
रंग अबीर गुलाल सँग, देना तुम आशीष।
पुण्य धर्म और कर्म से, ऊंचा होवै शीश।।
पावन होली पर्व में, खुशियों का है रंग।
रीति पिरीति बढाइये, गुझिया मिश्री संग।।
गले लगाकर दे सको, अपने अरि को मान।
होली के सँग आपका, बढ़ जाये सम्मान।।
बीत गया हुड़दंग में, होली का दिन आज।
करना है फिर से हमें, कल से अपना काज।।
चुनाव
नेताजी जी बेचैन हैं, आया निकट चुनाव।
हाथ जोड़कर कह रहे, पार लगा दो नाव।।
उनके चाल – चरित्र में, दिखे बड़ा बदलाव।
बप्पा ने बतला दिया, आया वत्स चुनाव।।
एनडीए को मिल रही, सीट चार सौ पार।
शोर बड़ा चहुँ ओर है, फिर मोदी सरकार।।
शोर चुनावी मच गया, गांव गली हर ओर।
नेता विनयावत दिखें, मन में रखकर चोर।।
नेताजी बेचैन हैं, आया निकट चुनाव।
पाँव पकड़ विनती करें, पार लगा दो नाव।।
नेताजी के चाल में, अंतर बहुत दिखाय।
बप्पा ने बतला दिया, दौर चुनावी आय।।
हर दल में भगदड़ मची, जनता है हैरान।
जिनकी कच्ची दाल है, माथे दिखे निशान।।
सुबह
सुबह सबेरे जागते, मोबाइल ले हाथ।
ठंडी होती चाय को, पिएं चैट के साथ।।
प्रात काल की नव किरणें, देती हैं संदेश।
उठो जल्दी योग करो,ऋषि मुनियों उपदेश ।।
सूरज हमको दे रहा, नित्य नया संदेश।
आगे हम बढ़ते रहें, और हमारा देश।।
जननी
माँ ममता की खान है, जिसको इसका ज्ञान।
जिसे नहीं इतना पता, वो मूरख अंजान।।
माता देती जन्म है, और पिलाती दुग्ध ।
सहती ढेरों कष्ट है, खोकर अपनी सूध।।
शीष झुकाकर मातु को, सदा दीजिए मान।
इतने से ही आपका, सभी करें गुणगान।।
मां के आँचल की जिसे, मिली नहीं है छांव।
जीवन भर उसने सहा, अपने दिल का घाव।।
दुनिया में सबसे बड़ा, माँ से रहना दूर।
जो वंचित होता सदा, बदकिस्मत भरपूर।।
पूजी जाती माँ सदा, श्रद्धा से तिहुलोक।
गिने नहीं वो वेदना, करे नहीं वो शोक।।
ईश्वर से होता बड़ा, जननी का स्थान।
शीश झुकाते ईश भी, देते हैं सम्मान।।
प्रथम गुरू माँ होत है, देती नव आधार।
शिष्ट बनाती वो हमें, दे अच्छे संस्कार।।
जननी धरा समान हैं , नहीं बजाए गाल।
नव जीवन निज अंश दे, रखती ऊँचा भाल।।
होता वो राजा स्वयं, जिसको सतपथ चाह ।
रंक वही होता बड़ा, जो है लापरवाह ।।
कंधा भी मिलता उन्हें, जिनके बड़े नसीब,।
अंत समय चलता पता, कौन अमीर गरीब।।
राजनीति की ओट में, धंधा करते लोग।
ऊपर से उजले दिखें, करते सुविधा भोग।।
धंधा करते लोग हैं, बिन धंधे के नाम।
असली धंधा जब खुले, कर देता बदनाम।।
कंधे से कंधा मिला, चलते हैं जो साथ।
अधर में कितने ठाठ से, वही छुड़ाते हाथ।।
आया नूतन वर्ष है, बोलो जय श्री राम।
मन में हो विश्वास तो, बनेंगे सारे काम।।
चिड़ियों की स्वर साधना, झनक न पड़ती कान।
आलस की चादर प्रबल, भंग कर रही ध्यान ।।
गुरुवर जी मेरा नमन, आप करें स्वीकार।
बस करिए इतनी कृपा, हो जाये उद्धार।।
मैं अज्ञानी मूढ़ हूँ, नहीं मुझे है ज्ञान।
पता नहीं मुझको प्रभो, छंदों का विज्ञान।।
कभी पिता को तुम सभी, करना नहीं निराश।
सुन लो उनके कटु वचन, पिता रूप आकाश।।
जीवन से मुॅंह मोड़ कर, कहाॅं छिपोगे आप।
करना है यदि पास तो, करो प्रभु का जाप।।
ये जीवन अनमोल है ,करिए सुंदर विचार ।
सोच समझ के कीजिए , कर्म बिना बेकार ।।
कविता
आदि शक्ति मैया सदा, मुझ पर भी दो ध्यान।
रख लो मेरी लाज माँ, देकर थोड़ा ज्ञान।।
कवियों का कर्तव्य है, कविता का हो नाम।
कविता के सम्मान से, कवि की कलम प्रणाम।।
कविता भी अब कह रही, हो न मेरा गान।
पीडा मेरी बढ़ रही, जब गिरता है मान।।
कविता से अब हो रहा, रोज रोज खिलवाड़।
कलम कवि की आड़ में, कविता बने पहाड़।।
कविता दिवस मनाइए, कर कविता का गान।
कलम कवि संग उच्च हो,तब कविता का मान।।
जो कविताई कर रहे, रखें कलम का मान।
ज्ञानेद्रियाँ खोल कर, सीखें नित नव ज्ञान।।
बोध नहीं साहित्य का, बहुत बघारें शान।
धनबल से ही मिल रहा, उन्हें रोज सम्मान।।
पैसे से हैं बिक रहे, रोज रोज सम्मान।
किसका कितना मान है, आपस में ही जान।।
पता नहीं साहित्य का, बांट रहे वे ज्ञान।
धनबल से जो ले रहे, रोज नया सम्मान।।
सुबह आपको नमन है, इसे करें स्वीकार।
आगे मर्जी आपकी, करिए आप विचार
सारी दुनिया व्यस्त है, फुर्सत में है कौन।
रिश्तों पर भारी पड़े, हम सबका ये मौन।।
रिश्ते जिंदा रह सकें, कोशिश करिए आप।
वरना बढ़ता ही रहे, इस समाज में पाप।।
आप मुझे करिए क्षमा, बहुत व्यस्त मैं आज।
वैसे मैं करता नहीं, ऐसा कोई काज।।
किसे पता है तनिक भी, कल भी होगा आज।
बस इतनी उम्मीद है, होंगे पूरे सब काज।।
शीष झुकाओ नित्य ही, मातु पिता के पाद।
भाएगा संसार का, मिश्री जैसा स्वाद।।
शोक सभा में आ गए, वे भी दुश्मन यार।
जिसने मेरे मौत की, माँगी दुआ हजार।।
दीपों की दीपावली, फैला मधुर प्रकाश।
दीपक के लौ से भरा, चमक रहा आकाश।।
दीपों की लड़ियां करें, नृत्य संग ही गान।।
अंधकार मिट जायेगा, दीपक सूर्य समान।
शिक्षा एक प्रकाश है, आप इसे लें जान।
आप दूर क्यों भागते, बनकर के अंजान।।
अंधकार में जब हमें, दिखे न कोई राह।
शिक्षा देती है जगा, मन में नव उत्साह।।
धमकाने बीबी लगी, दंग रह गया यार।
समझ नहीं आया मुझे, ये कैसा त्योहार।।
जीवन साथी ने कहा, छोड़ो बिस्तर यार।
आठ सुबह के बज गए, करो चाय तैयार।।
भ्रष्टाचारी जनों का, करें लोग सम्मान।
होते हैं जो निष्कपट, पाते हैं अपमान।।
ज्येष्ठ श्रेष्ठ जो लोग हैं, करें आप सम्मान।
बढ़ जायेगा आपका, इतने भर से मान।।
माँ की ममता का कभी, करिए मत अपमान।
विपदा का है मार्ग यह, रखो सदा ही ध्यान।।
उतर गया खुमार है, बीते दिन के साथ।।
लौट काम पर आ गए, जो था जिसके हाथ।।
चोरी भी अब कर रहे,कुछ तो सीना तान।
बनते बिल्कुल श्वेत हैं, दिखलाते अति शान।।
आप क्षमा कीजै मुझे, भूल करुं स्वीकार।
बस इतनी सी बात है, नहीं ठानिए रार।।
दंभ न इतना कीजिए,करिए सोच विचार।
अपने हित खातिर प्रभू, करो प्रेम व्यवहार।।
क्षणिक स्वार्थ के फेर में, नहीं किसी को भूल।
कल को रोना क्यों पड़े, बने फूल जब शूल।।
नमन करो तुम मातु को, रख मन में विश्वास।
करो प्रेम हर जीव से, बिखरेगी क्यों आस।।
सुबह सवेरे आप सब, ठंडा रखिए माथ।
रखें हृदय को शांत जब, मृदु अनुभव के साथ।।
मूर्ख दिवस
सबसे पहले मूर्ख तो, हमें बनाया यार।
इससे पहले तो कभी, किया नहीं था प्यार।।
मूर्ख दिवस पर हम बने, मूर्ख सुबह ही आज।
बीबी जब कहने लगी, उठ मेरे सरताज।।
एडमिन ने मुझको किया, ठेल ठाल उस पार।
मूर्ख बनाया फिर कहा, अप्रैल फूल है यार।।
दादी जब कहने लगीं, लड़ना मुझे चुनाव।
दादा ने भी कह दिया, सिंबल होगा नाव।।
मूर्ख बनाने के लिए, जब आये इसबार।
भौजी बाहर थी खडी,हाथ लिए पोतनार।।
नमन करूंँ मैं आपको,बंधु करो स्वीकार।
थोड़ा सा बस प्यार दो, थोड़ा लाड़ दुलार।।
मन मेरा बेचैन है, बुद्धि रही चकराय।
कोई बतला दे मुझे, किसकी है ये हाय।।
गुरुवर जी मेरा नमन, आप करें स्वीकार।
बस करिए इतनी कृपा, हो जाये उद्धार।।
सभी बड़ों को नमन है, छोटों को आशीष।
सब पर ईश्वर की कृपा, झुके नहीं ये शीश।।
लालच से है क्या मिला, करिए आप विचार।
जिसकी खातिर कर लिया, दूषित निज व्यवहार।।
नमन निवेदित कर रहा, आप करें स्वीकार।
राह दिखाएं आप जब, तब हो बेड़ा पार।।
नहीं राह मिलती मुझे, समय चक्र का खेल।
जाऊं जिसके पास मैं, देता मुझको ठेल।।
मन प्रसन्न रखिए सदा, ईश्वर को रख याद।
रहे साथ वो ही सदा, सुनने को फरियाद।।
मुझसे तो होता नहीं, देना सबको ज्ञान।
लग सकता है आपको, ये मेरा अभिमान।।
नेकी करना रोग है, आप लीजिय जान।
नेकी करके भूलना, सबसे सुंदर ज्ञान।।
आज किसी के दर्द से, रोता भला है कौन।
जिनको अपना मानते, सबसे पहले मौन।।
दुखी न होना चाहिए, चाहे जैसा हाल।
केवल होगा आपका, ये जीवन बेहाल।।
सबके जीवन में ही चले, सुख दुःख का तो दौर।
दुखी न होना चाहिए, सबका अनुभव और।।
नदी
अविरल अपने वेग से, बहे नदी स्वच्छंद।
बहती नदिया तो लगे, मोहक सी मकरंद।।
नदियां सूखी रो रहीं, ये उनका दुर्भाग्य।
हमने कब छीना भला, कभी किसी का भाग्य।।
गौमाता
कूड़ा कचरा खा रही, गौमाता जी आज।
कब किस को आता भला, सच बतलाओ लाज।।
माता गौ को बोलते, करते हो अपमान।
कुत्ते बिल्ली पालते, ,सांसत में है जान।।
समय चक्र का खेल है, हम सब हैं लाचार।
आज लगत माँ बाप हैं, हम सबको बेकार।।
सुख दुख जीवन चक्र है, मत हो यार अधीर।
आ करके चल जायेगा,कभी रहा नहि थीर।।
मत हो दुःख में दुःखी तुम,सुख पा भाव बिभोर।
इक आवत इक जात है,इस जीवन के दौर।।
किसमें ताकत है भला, सुख दुख सकता रोक।
दुखी न होना चाहिए, मत करना तुम शोक।।
पति है हिंसक शेर यदि, पत्नी होती गाय।
पडती यदि वह सामने,दिखत बहुत असहाय।।