मुगालता
आंख बंद कर मुगालते में जीने वाले,
पग पग पर अपमान के घूंट पीने वाले,
दलालों को अपना नेता मानने वाले,
सही को देख भृकुटि तानने वाले,
सब कुछ देख सच को सच न मानने वाले,
शुद्ध को कपड़ा लगा छानने वाले,
क्या ये सब अपनों को धोखा नहीं दे रहे,
जो महापुरुषों के बताये मार्ग को गलत कहे
क्या वो विरोधियों को मौका नहीं दे रहे,
अरे कब पहचान पाओगे अपनों को,
कब पूरा करोगे महामानवों के सपनों को,
दलाली करने से
सिर्फ दल्लों का पेट पलता है,
जिसकी देखादेखी पुछल्ले पीछे चलता है,
क्या तुम्हें नहीं पता कि
ताक़तवर दुश्मन सही समय पर
एक भांड दलाल छोड़ता है,
जो भड़काता है,उकसाता है,
बात बात पर मूछें मरोड़ता है,
ऐसे लोग रातों रात महान बनते हैं,
और प्रतिद्वंदियों की मुँहबायें खड़ी
समस्याओं का समाधान बनते हैं,
नादान बनते हो,नादान दिखना चाहते हो,
या सचमुच अहमक हो,
एक बार जरूर सोचना मुगालते में रहने वालों।
— राजेन्द्र लाहिरी