ग़ज़ल
यारी में मतलब की मिलावट मैं नहीं करता,
सच्ची बात कहता हूँ बनावट मैं नहीं करता
जहां तक साथ दे कोई वहां तक ही गनीमत है,
किसीसे भी कोई शिकवा शिकायत मैं नहीं करता
यूँ शतरंजी चालों से वाकिफ मैं बखूबी हूँ,
रिश्तों में मगर दिल के सियासत मैं नहीं करता
अमीर-ए-शहर हैं वो और मैं मुफलिस सही लेकिन,
मुनाफे के लिए उनकी खुशामद मैं नहीं करता
मेरी मजबूरियां बाज़ार में ले आईं हैं मुझको,
ज़मीर की मगर अब भी तिजारत मैं नहीं करता
मुहब्बत से यहां सबके दिलों को जीत लेता हूँ,
ताकत से लोगों पर हुकूमत मैं नहीं करता
— भरत मल्होत्रा