मेरी कविता सबसे सुन्दर
सुघड़, सलोनी, प्यारी – प्यारी
जिसपर जाऊँ मैं बलिहारी
मति को उलझाये रखती है
कहती है सुन दिल की बातें
याद करो वह प्रीत पुरानी
जोशीले वह मस्त रवानी
आँखों से आँखों की बातें
करते-करते कटती रातें
निशा छेड़ती मधुर रागिनी
करने लगती नृत्य कामिनी
ताल मिलाती अपनी धड़कन
अश्रु खुशी से बहते निर्झर
मेरी कविता सबसे सुन्दर
प्रिय करते नखशिख का वर्णन
खिल उठता था अपना तन-मन
कल्पित कलियाँ खिल जाती थीं
किस्मत अपनी इठलाती थी
झंकृत होकर मन की वीणा
हर लेती थी अपनी पीड़ा
थे साक्षी अम्बर के तारे
धरा – गगन के राज दुलारे
टूट मुरादें करते पूरी
खुशियाँ खुद आतीं थीं चलकर
मेरी कविता सबसे सुन्दर
शब्दाक्षर भी स्वयं सधे थे
भाव छंद में सिमट बंधे थे
अधर हमारे सिल जाते थे
भाव सुमन पर खिल जाते थे
सुरभित हो जाता था अन्तः
भावों में हम जाते थे बह
तभी लेखनी चल पड़ती थी
लिखने कोई गीत मनोहर
तोल मोल कर अक्षर – अक्षर
मेरी कविता सबसे सुन्दर
— किरण सिंह