कहानी

झूठी शान

ऋषि के जाॅब के बाद पहली बार जब मैं बैंगलोर गई थी तो घर में घुसते ही मुझे कुछ अच्छा लगा फिर भी मेरी नजरें अपने स्वाभावानुसार घर का निरीक्षण करने ही लगीं थी। लेकिन इसबार घर काफी साफ सुथरा तथा सुव्यवस्थित था। फिर भी चमचमाते हुए फर्श के कोनों तथा खिड़कियों और दरवाजों पर जमी कहीं – कहीं धूल की परतों को मेरी नज़र ने ढूढ ही लिया, लेकिन उस दिन मैंने तारीफ की क्योंकि मुझे पिछली बातें याद थीं जब मैं ऋषि के (जब स्टूडेंट था) घर जाते ही सफाई अभियान में लग जाती थी। तब ऋषि बहुत परेशान हो जाता था क्योंकि मैं जितना ही घर के सदस्यों की फूहड़ता से परेशान रहती हूँ उससे कहीं अधिक पतिदेव और बच्चे मेरी सफाई से परेशान रहते हैं।
तभी ब्रैंडेड जींस और टीशर्ट पहन हुआ स्मार्ट सा लड़का..ब्रैंडेड कैप लगा हुआ टी शर्ट, ब्रैंडेड लोअर, ब्रैंडेड चप्पल, कान में स्पीकर, पाॅकेट में मोबाइल रखे हुए हाथ में ट्रे लेकर आया। अगर वो ट्रे लेकर नहीं आया होता तो मैं समझती कि ऋषि का कोई दोस्त है। मैं समझ गई कि यही अमित है जिसे ऋषि ने अपने घर में कुक के तौर पर रखा था।
अमित जैसे ही ट्रे रख कर गया मुझसे ऋषि से कहे बिना नहीं रहा गया – “देखो तो अपने नौकर को और सीखो उसी से टिप – टाॅप से रहना।”
ऋषि ने अपने पुराने अंदाज में बोला – “मम्मी उन लोगों को दिखाने के लिए कपड़े और फैशन के अलावा और है ही क्या ? वैसे भी कपड़े कम्फर्फर्ट के लिए पहनना चाहिए न कि दिखावे के लिए ? ऋषि अपने बरमूडा और स्लीवलेस गंजी में ही मस्त अमित को खाना लगाने को बोलकर हमारे साथ बातें करने लगा। मैं किचेन में स्वभावतः जाना चाही तो उसने मुझे साफ हिदायत दी कि आपको यहाँ पर सिर्फ आर्डर देना है खाना आ जाएगा, किचेन में घुसना बंद। उसदिन बेटे का माँ पर हुकूमत करना मुझे कुछ सुकून भी दे रहा था और कुछ असहज भी कर रहा था। फिर भी मेरे पास उसकी बात मानने के अलावा कोई और चारा नहीं था।
ऋषि ने अमित से कहा – “अमित खाना में देर है क्या..?”
अमित – “नहीं भैया बस थोड़ी देर रुक जाओ, कूकर के भाप सारे खुद से निकलेंगे न तो सब्जी में स्वाद आयेंगे। कुछ देर बाद अमित खाना लाया वास्तव में खाना बहुत ही स्वादिष्ट था इसलिए मैंने अमित की तारीफ भी की। तारीफ़ करने की आदत मुझमें मेरी नानी – दादी ने डाल दी थी। वे कहतीं थीं कि कोई चीज पसंद आये और उसकी तारीफ़ न की जाये तो अगला जन्म छछुन्दर का होता है। अब अच्छा – भला मनुष्य अगले जन्म में छछुन्दर भला क्यों बनना चाहेगा सो तारीफ़ करना ही पड़ता था जो अब आदत में शामिल हो गई है।
हम खा – पीकर बातें करते-करते कब सो गये पता ही नहीं चला। अगले सुबह अमित बालकनी में बैठकर घंटे भर से किसी से मोबाइल पर बातें कर रहा था। मैंने बहुत इंतजार के बाद उससे चाय बनाने के लिए कहा तो वह बोला – “थोड़ी देर रुक जाओ आंटी, मेरे किसी खास का काॅल है। मैं समझ गई उसके हाव भाव से कि किस खास का काॅल होगा क्योंकि ऋषि ने बताया भी था कि उसकी एक गर्लफ्रेंड भी है। तब इंतजार के सिवा मेरे पास कोई चारा भी नहीं था। करती भी तो क्या करती …..। सोंचा खुद बना लूं पर एक तो ऋषि ने किचेन में जाने से मना किया था और दूसरा गन्दे किचेन में कैसे जाती मैं । कहाँ मैं शुद्ध शाकाहारी और किचेन में मांसाहार के बर्तन पड़े हुए थे जिसे मैं छूती तक नहीं हूँ।
तब ऋषि सोया था, छोटे बेटे आर्षी को काॅलेज जाना था तो अमित ने आर्षी को कुछ अच्छा सा नाश्ता बनाकर दे दिया और मुझे चाय पकड़ाते हुए पूछ – “आंटी आपके लिए क्या लाऊँ ?”
मैंने कहा – “थोड़ी देर बाद फल काटकर लाना और साथ में एक कप दूध भी।”
तबतक मैं नहाकर पूजा-अर्चना कर जैसे ही ड्राइंग रूम में आई, अमित फल और दूध दो जगह लेकर आ गया और मेरी बगल वाली कुर्सी पर खुद भी बैठ कर नाश्ता करने लगा। तब मैं कुछ असहज भी हु ईथी फिर भी अमित से बातें करने लगी। मैने कहा – ” चलो अच्छा लगा तुम अच्छे से ख्याल रख लेते हो इन दोनों भाइयों का।”
अमित बोला – “आंटी आप निश्चिंत रहिये क्यों कि जितना आप ऋषि और आर्षी भैया को नहीं समझती हैं न उससे अधिक मैं समझता हूँ और ख्याल रखता हूँ..।
इस बात पर मुझे तो कुछ हंसी भी आ रही थी फिर भी हंसी रोकने का प्रयास करते हुए उससे बातें किये जा रही थी। आखिर इन लोगों का खुश रहना भी बहुत जरूरी है क्योंकि खयाल तो रख ही रहा है। बातों – बातों में अमित ऋषि की तारीफ भी किये जा रहा था – “आंटी ऋषि भैया तो भगवान् हैं। मैं तो उन्हें कभी भी नहीं छोड़ूंगा। ऋषि के साथ-साथ अमित अपनी भी तारीफ किये जा रहा था। बोल रहा था – ” आंटी मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर संजीव कपूर मुझसे अच्छा क्या खाना बनाता होगा? मैं ये बनाता हूँ…. मैं वो बनाता हूँ, सोचता रहता हूँ इसमे कौन से मसाला डालकर बेहतर बनाऊँ……. आदि – आदि वह बोले जा रहा था और मुझे मजबूर होकर उसकी हाँ में हाँ मिलाना पड़ता था।
एक बार तो जब ऋषि आॅफिस जाने की जल्दी में बिना खाए जा रहा था तो मैने जल्दी से उसके बैग में टिफिन डाल दी। उस समय ऋषि को जल्दी थी इसलिए थोड़ा मुझपर झल्लाया भी था ” मम्मी आप बहुत तंग करती हैं।”
.उसके बाद तो अमित मुझे ही सिखाने लगा। कहने लगा – “आंटी आप बेकार में ऋषि भैया के लिए इतना परेशान रहतीं हैं मैं तो ऋषि भैया जैसा कहते हैं वैसा ही करता हूँ, ” आप बेवजह भैया लोगों की फिक्र करती हैं। दोनों भैया का जितनी मैं ख्याल रखता हूँ न, उतनी आप नहीं रखती होंगी ।” तब अमित पर मुझे गुस्सा भी आ रहा था। जी में आ रहा था जोरों की झाड़ लगाऊँ लेकिन मेरी मति मुझसे कहती – “कन्ट्रोल किरण”
फिर दोनों बेटों के घर के बाहर कदम रखते ही उनके काफी हिदायतों के बावजूद भी मैं लग गई थी सफाई अपने अभियान में। अमित को और सभी जगहों की साफ-सफाई की हिदायत देकर मैं बच्चों का वार्डरोब ठीक करने लगी। वार्डरोब देखकर मुझे कुछ झुंझलाहट भी हुई थी। मैं मन ही मन सोच रही थी – “बाप रे कैसे बिखरे पड़े हैं कपड़े, कैसे मिलता होगा इन बच्चों को अपना सामान ?
मैंने सारे कपड़ों को हैंगर में टांग कर रखा, घर में यत्र-तत्र बिखरे सामानों के साथ-साथ किताबों तथा कापियों को भी यथास्थान रखवाई, कोने – कोने से धूल झड़वाया, फिर जाकर मुझे थोड़ा चैन आया।
शाम को जब दोनों बेटे घर में आए और वे अपना सामान ढूढने लगे तो उन्हें अपना सामान मिल ही नहीं रहा था।
फिर मैंने उनसे पूछा – “क्या चाहिए बेटा?”
बेटे – “मम्मी आप तो सब सामान इधर से उधर कर देती हैं। कुछ भी मिल नहीं रहा है। पटना में तो दिन भर साफ-सफाई करती ही हैं यहाँ भी……….
आपको आराम करने का मन नहीं करता क्या ……. ?”आदि – आदि……
मैने उनसे कहा – “सामान इतना बिखरा पड़ा था तो मैंने सजा कर रख दिया ताकि तुम दोनों को ढूढने में परेशानी न हो और तुम दोनों मेरी तारीफ़ करने की बजाय उल्टे शिकायत कर रहे हो ……?
बेटे – “मम्मी हम लोगों को बिखरे हुए सामान ही आसानी से मिल जाते हैं हमें पता होता है कि कौन सा सामान कहाँ है। आप प्लीज इधर-उधर मत किया कीजिये। अब मुझे लगने लगा था कि बेटों के घर में बेटों का ही रूल चलेगा।
रात में मैं सोची ऋषि के पसंद की आलू में सरसों की ग्रेवी वाली सब्जी मैं खुद से बना दूँ।
वैसे दोपहर में बनी हुई कुछ दाल पूड़ियां बच गई थी जिसमें से एक मैंने ले ली और दूसरी अमित को बोल दी कि – “एक दाल पूरी तुम ले लेना। “
फिर अमित बोला – “आंटी आप मुझे बासी मत खिलाया करो।”
मैंने उससे कहा – “दिन के दो बजे की बनी पूड़ियां शाम आठ बजे तक बासी हो गईं? और मैंने तो खुद भी खायी है।
तब मैं अपने मन में सोंचने लगी कि कितना मन बढ़ा हुआ है इन लोगों का, कितने कमजोरी बन जाते हैं ये हमारे, यदि ये अमित मेरे घर ( पटना मे) होता तो और बात थी लेकिन यहाँ तो बच्चों के घर की बात है, यदि अमित ने काम छोड़ दिया तो मुश्किल ही होगी क्योंकि कि ऋषि खाने-पीने का बहुत शौकीन है। बड़ी मुश्किल से उसे अपना मनपसंद कुक मिला था। यह सब सोचकर मैंने अमित को कुछ भी नहीं कहा।
एक बार घर में छोटे बेटे आर्षी के दोस्त खाना पर आने वाले थे। मैंने अमित को ये बात बताई तो वह मेन्यू गिनाने लगा – आंटी मैं यह बना दूंगा मैं वह बना दूंगा लेकिन आंटी मैं खाना बनाकर कहीं चला जाउंगा। खाना आप दे देना। “
मैंने कहा -” क्यों..? “
अमित -” आंटी कहीं आर्षी भैया के दोस्तों में से कोई मेरा दोस्त निकल गया तो…? “
अमित की बातें सुनकर अंदर ही अंदर मेरी हँसी छूट रही थी लेकिन मैंने रोक लिया कि कहीं उसे बुरा न लग जाये।
दूसरे दिन शाम को करीब सात बजे अमित मुझसे कहा – “आंटी मैं रोटियाँ बनाकर रख देता हूँ.। “
मैंने कहा -” अभी से क्यों, अभी तो सात ही बजे हैं।
जब खाने का टाइम होगा तो गर्म – गर्म सेंकना क्योंकि दोनो भैया ठंडी रोटियाँ नहीं खाते।”
अमित – “अरे आंटी आप भी बहुत टेंशन लेती हो। आपको पता है यहाँ और घरों में भइया लोग तो सूखी रोटियाँ और मैगी ही खाकर काम चला लेते हैं। “
अमित की इस बात पर मेरा गुस्सा कंट्रोल से बाहर हो गया। मैंने उससे कहा -” खाना बनाकर रख ही देना होता और रूखा सूखा ही खाना होता तो तुम पर दस हजार खर्च करके अपने घर में क्यों रखते हम। ” आराम से हजार पन्द्रह सौ में एक कुक रख लेते जो खाना बनाकर चला जाता। तुम्हें तो इसी वजह से रखा गया है न? “मेरी यह बात अमित के दिल पर लग गई और फिर उसने मुझसे कहा -“आंटी मैं अपने घर जाऊँगा।”
अमित की बात सुनकर मुझे चिंता हुई क्योंकि अगले ही दिन मुझे वापस पटना आना था। मैं मन ही मन यह सोचकर परेशान थी कि बेटों को तो जो परेशानी होती सो होती ही पतिदेव कहेंगे कि तुम वहां की व्यवस्था बनाने की जगह और बिगाड़ ही कर चली आई। इसीलिए अमित को समझा-बुझाकर मैंने रुकने के लिए मना लिया। अगले दिन मुझे वापस आना था इसलिए अमित को एक हजार रुपये पकड़ा दिया कि वह खुश रहे। मैं अगले दिन वापस पटना चली आई ..।
कुछ दिनों बाद अमित का काॅल आया – “आँटी मैं काम छोड़ कर जा रहा हूँ.।”
मैंने कहा – “क्यों….?”
अमित – “आंटी आर्षी भैया सभी लोगों को बता दिए हैं कि मैं यहाँ कुक का काम करता हूँ.।”
मैंने कहा – “तो क्या हुआ, काम करने में बुराई क्या है ?”
अमित – “नहीं आंटी मेरी इज्जत का सवाल है। गार्ड, स्वीपर आदि मुझे यहाँ सर – सर कहकर बुलाते हैं क्योंकि वे जानते थे कि मैं भैया लोगों का फ्लैटमेट हूँ। अब यह जानकर कि मैं यहाँ पर कुक हूँ तो उनकी नजरें बदल जाएंगी मेरे प्रति, मैंने तो सोंचा था कि सारी जिंदगी गुजार दूंगा ऋषि भैया के यहाँ लेकिन अब मैं नहीं रुक सकूंगा।
अमित सिर्फ अपनी झूठी शान की वजह से काम छोड़कर चला गया।

— किरण सिंह

*किरण सिंह

किरण सिंह जन्मस्थान - ग्राम - मझौंवा , जिला- बलिया ( उत्तर प्रदेश) जन्मतिथि 28- 12 - 1967 शिक्षा - स्नातक - गुलाब देवी महिला महाविद्यालय, बलिया (उत्तर प्रदेश) संगीत प्रभाकर ( सितार ) प्रकाशित पुस्तकें - 20 बाल साहित्य - श्रीराम कथामृतम् (खण्ड काव्य) , गोलू-मोलू (काव्य संग्रह) , अक्कड़ बक्कड़ बाॅम्बे बो (बाल गीत संग्रह) , " श्री कृष्ण कथामृतम्" ( बाल खण्ड काव्य ) "सुनो कहानी नई - पुरानी" ( बाल कहानी संग्रह ) पिंकी का सपना ( बाल कविता संग्रह ) काव्य कृतियां - मुखरित संवेदनाएँ (काव्य संग्रह) , प्रीत की पाती (छन्द संग्रह) , अन्तः के स्वर (दोहा संग्रह) , अन्तर्ध्वनि (कुण्डलिया संग्रह) , जीवन की लय (गीत - नवगीत संग्रह) , हाँ इश्क है (ग़ज़ल संग्रह) , शगुन के स्वर (विवाह गीत संग्रह) , बिहार छन्द काव्य रागिनी ( दोहा और चौपाई छंद में बिहार की गौरवगाथा ) ।"लय की लहरों पर" ( मुक्तक संग्रह) कहानी संग्रह - प्रेम और इज्जत, रहस्य , पूर्वा लघुकथा संग्रह - बातों-बातों में सम्पादन - "दूसरी पारी" (आत्मकथ्यात्मक संस्मरण संग्रह) , शीघ्र प्रकाश्य - "फेयरवेल" ( उपन्यास), श्री गणेश कथामृतम् ( बाल खण्ड काव्य ) "साहित्य की एक किरण" - ( मुकेश कुमार सिन्हा जी द्वारा किरण सिंह की कृतियों का समीक्षात्मक अवलोकन ) साझा संकलन - 25 से अधिक सम्मान - सुभद्रा कुमारी चौहान महिला बाल साहित्य सम्मान ( उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ 2019 ), सूर पुरस्कार (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान 2020) , नागरी बाल साहित्य सम्मान बलिया (20 20) राम वृक्ष बेनीपुरी सम्मान ( बाल साहित्य शोध संस्थान बरनौली दरभंगा 2020) ज्ञान सिंह आर्य साहित्य सम्मान ( बाल कल्याण एवम् बाल साहित्य शोध केंद्र भोपाल द्वारा 2024 ) माधव प्रसाद नागला स्मृति बाल साहित्य सम्मान ( बाल पत्रिका बाल वाटिका द्वारा 2024 ) बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से साहित्य सेवी सम्मान ( 2019) तथा साहित्य चूड़ामणि सम्मान (2021) , वुमेन अचीवमेंट अवार्ड ( साहित्य क्षेत्र में दैनिक जागरण पटना द्वारा 2022) जय विजय रचनाकर सम्मान ( 2024 ) आचार्य फजलूर रहमान हाशमी स्मृति-सम्मान ( 2024 ) सक्रियता - देश के प्रतिनिधि पत्र - पत्रिकाओं में लगातार रचनाओं का प्रकाशन तथा आकाशवाणी एवम् दूरदर्शन से रचनाओं , साहित्यिक वार्ता तथा साक्षात्कार का प्रसारण। विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों पर अतिथि के तौर पर उद्बोधन तथा नवोदित रचनाकारों को दिशा-निर्देश [email protected]