सामाजिक

चेहरे बदल जाते हैं पर दरिंदगी वही रहती है।

कोलकाता डॉ रेप केस ने हम सबको हिलाकर रख दिया। कहीं डर का माहौल बना तो कहीं आक्रोश का। मैं भी बहुत सहमी और लाचार महसूस कर रही थी समझ नहीं आ रहा था कि क्या लिखूं, कैसे लिखूं? क्योंकि हमारे समाज की ये दुर्बलता है कि यहां बलात्कार की वारदातें आए दिन होती रहती हैं। ये बलात्कारी हमारे बीच, हमारे समाज में ही रहते हैं और यहीं अपनी दूषित सोच के चलते दरिंदगी को अंजाम देते हैं। ये इतनी नीच प्रवृत्ति के लोग होते हैं जो न बच्ची को छोड़ते न ही वृद्धा को। इनकी नस-नस में केवल हवस भरी होती है।
मुझे समझ नहीं आता आख़िर कैसे ये दरिंदे बेखौफ होकर जुर्म को अंजाम देते हैं? क्या इन्हें किसी का डर नहीं? क्या हमारे देश की कानून व्यवस्था इतनी कमजोर है जो अपराधियों के मन में डर कायम नहीं रख सकती? क्या केवल मोमबत्ती जलाकर और न्याय की भीख मांगकर ही हम इंसाफ की उम्मीद लगा सकते हैं? ये सब सवाल हम सबके मन में उठते हैं पर इनके जवाब हमें मिल नहीं पाते। सोचिए जब उस लड़की के साथ ये निंदनीय कृत्य घटित हो रहा होगा तब कितनी वेदना,कितना दर्द उसने सहा होगा।ये सोचकर हृदय कांप जाता है कि कोई जानवर भी वैसा हाल नहीं करेगा जैसा किसी इंसान ने इंसान का किया।
और वे घटिया लोग जो बलात्कारियों को बचाने की कोशिश में कभी सबूत मिटाते हैं, कभी अभया के मर्डर को सुसाइड बताते हैं,वे भी हमारे बीच के हैं जो अपनी असंवेदनशीलता को उजागर करते हैं।
कितनी अजीब बात है कि अपराधी की भी मां, बहन,बेटी होती ही होगी और जुर्म पर पर्दा डालने वालों की भी, फिर भी ये किसी और की बहन-बेटी का दर्द दरकिनार कर देते हैं। सच कहूं तो खौफ में जीने की जरूरत आम लोगों को नहीं बल्कि अपराधियों को होनी चाहिए, ताकि बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों को बल न मिले।
अगर हमारे शासन-प्रशासन इतने काबिल नहीं हैं कि वे अभया और उसके जैसी तमाम मासूमों को इंसाफ दे सके और चौराहे पर उनके अपराधियों को फांसी पर लटका सकें तो ये काम आप आक्रोशित जनता पर छोड़ दीजिए। यक़ीनन इंसाफ होगा, बेहतर होगा। अंत में एक अपील उन महान सत्ताधारियों से जो बलात्कार और फिर मर्डर जैसी घटनाओं को हल्के में लेकर आरोपियों की कड़ी सजा देने की कोशिश न करते हुए, पीड़ित परिवार को मुआवजा दे चुप करवाने की निंदनीय कोशिश करते हैं, उन्हें केवल मानवता के नाते ये सोचना चाहिए कि आपके प्रपंच किसी की बच्ची वापिस नहीं ला सकते,न ही आप उस अगाध शोक़ और दुख से पीड़िता के परिजनों को निकाल सकते,जो कहीं न कहीं शासन और प्रशासन की लापरवाही की ही देन है।
“केवल कैंडिल नहीं, अपराधी को भी जलाओ।
दर्द, बेबसी, कराहना क्या होती है,इनको भी तो बताओ।
हर बार नया चेहरा पर दरिंदगी वही होती है,
इस बार सबक इन्हें भी, इनकी ही भाषा में समझाओ।”
तभी मिलेगी सच्ची आजादी और सच्चा न्याय।
जय हिन्द, जय भारत।

— अंकिता जैन अवनी

अंकिता जैन 'अवनी'

लेखिका/ कवयित्री अशोकनगर मप्र [email protected]