भौतिक सत्ता
जिंदगी जोंक सी
रक्त पान कर रही है।
मौत के नगर में
जिंदगी से खिलवाड़ कर रही है।
काले उजले दिन में
देश का गणतंत्र
सुखे पत्ते की तरह
ठिठुर कर अस्फुट हो
शिकायत कर रहा है।
भौतिकता का कंकाल
महानगर की दहलीज लांघकर
विक्षुब्ध कर सब को
महाविनाश कर रहा है।
देश की राजसत्ता
पंख उखाड़ कर मध्य वर्ग के
जनसत्ता के नाम पर
रंगमहल का चुनाव कर रही है ।
— डॉ. राजीव डोगरा