कहानी

बेटी की अर्जी

शान्ति जब भी किसी नाते-रिश्तेदारों के विवाह आदि समारोहों में जाती तो वह उनके साधारण कमाऊ लड़के की भी खूबसूरत, पढ़ी – लिखी और साथ में दहेज लाई हुई बहुओं को देखती तो उसके मन में एक टीस सी उठती और वह मन ही मन उनकी किस्मत को दाद देती और अपनी किस्मत को कोसती। वैसे तो शांति की पूरी कोशिश रहती थी कि वह अपने मन की व्यथा मन में ही रखे, लेकिन होठों को सिलना इतना आसान कहाँ होता है वह भी अपने घर-परिवार में जिसके साथ चौबीसों घंटे रहना होता है इसलिए उसके मन के घावों को किसी ने ज़रा भी कुरेदने की कोशिश की तो वह फूट पड़ते थे।

एक दिन शान्ति अपने भतीजे की शादी समारोह से लौटी थी। भतीजे की शादी बड़ी धूमधाम से हुई थी। वैसे तो विवाह बिना दहेज का हुआ था लेकिन लड़की वालों ने बिन मांगे ही बारातियों का स्वागत-सत्कार से लेकर अपनी बेटी – दामाद के जेवर कपड़ों पर ही करोड़ों खर्च कर दिये थे ऊपर से दूल्हन भी सुन्दरता, शालीनता व विद्वता की प्रतिमूर्ति थी। यदि सच्चाई से परीक्षण किया जाये तो कोई भी लड़की अपने मायके को फलते-फूलते देखकर बहुत ज्यादा ही खुश होती है लेकिन मानव स्वभाव ही है कि लाख कोशिशों के बावजूद भी वह किसी न किसी से अपनी या अपनो की तुलना करके अपनी ही खुशियों का दुश्मन बन बैठता है।
अपने पति महेश से बातें करते हुए बातों – बातों में ही शांति उलाहना दे रही थी – “देखिये मेरी भतीजपतोहू कितनी सुन्दर और गुणीं है। साथ ही बिन मांगे ही उसके माँ – बाप इतना दान – दहेज दिये हैं कि मेरे भाई का पूरा घर भर गया है और एक हमारी किस्मत फूटी है कि बहु का न रूप। है न रंग और उसके मायके वालों के पास तो दिल ही नहीं है कुछ देने का। लाख मना कर रही थी मैं आपको कि “मेरे बेटे का विवाह यहाँ मत कीजिए, लेकिन आप तो मेरी कभी सुनते नहीं। उठा लाये अपने दोस्त की बेटी को और मढ़ दिये हमारे हीरा बेटे सुमित के मत्थे।”
महेश – “अरे कितना बोलती हो चुप भी करो वर्ना बहु सुन लेगी तो कितना बुरा लगेगा उसे” ।
शान्ति – “सुन लेगी तो सुन ले..….ऐसा कोई होता है क्या कि अपनी बेटी को दो जोड़ी कपड़े में विदा कर दिया। हमने भी तो अपनी बेटी की शादी की – लव मैरिज था, चाहते तो हम भी कुछ नहीं देते लेकिन हमने क्या कुछ नहीं दिया… ” शान्ति अभी बोल ही रही थी कि पर्दे के निचले हिस्से से किसी के पाँव दिखाई दिये तो उसका आलाप अचानक बंद हो गया । तभी निधि चाय बिस्किट लेकर आई । शान्ति थोड़ी झेप गई क्योंकि वह समझ गई कि बहु ने सब सुन लिया होगा।
एक दिन अचानक शान्ति की तबियत बहुत खराब हो गई। सभी परेशान हो गये अन्ततः उसे हास्पिटल लेकर जाना पड़ा। सारा चेकप करने के बाद रिपोर्ट देखकर डाॅक्टर बोला कि शांति जी की किडनी पचहत्तर प्रतिशत तक खराब हो चुकी है। आप घर जाकर आपस में डिस्कस करें कि डायलिसिस पर रहना है या किडनी ट्रांसप्लांट करवाना है? अगर किडनी ट्रांसप्लांट करवाना है तो फिर कौन देगा आदि – आदि बातें तय कर लें क्योंकि किडनी मिलने के बाद भी काफी फार्मेलिटीज पूरी करनी पड़ती है।
घर आने के बाद महेश और निधि के पति सुमित काफी परेशान हो गये। सोच रहे थे कि कौन किडनी देगा। मेरा तो. किडनी मैच ही नहीं कर रहा है। शान्ति के परिवार में उसके भाई – बहन सभी शुगर और ब्लडप्रेशर के पेशेंट हैं। क्या करूँ, कहाँ जाऊँ…… मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना भी कर रहे थे कि हे ईश्वर कोई भी तो तैयार हो जाये अपनी किडनी देने के लिए । वह अपने नजदीकी रिशतेनातेदारों से बात करके उन्हें समझाने की कोशिश भी की कि एक किडनी से भी आदमी अच्छा जीवन जी सकता है और यह बहुत पुण्य का काम है, फिर भी किडनी दान करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। कुछ लोग तो डर रहे थे और जो कुछ तैयार भी थे उनका ब्लड ग्रुप नहीं मिल रहा था। सभी लोग निराश थे तभी अचानक कमरे में आकर निधि ने कहा पापा “मेरा ब्लड ग्रुप ओ पाॅजिटिव है और मम्मी जी से मैच कर जायेगा मैं दूंगी मम्मी जी को अपना किडनी” ।
सुमित – ” तुम..”
निधि -” हाँ मैं, मैं बायो की स्टूडेंट हूँ और मुझे पता है कि एक किडनी पर भी हम जी सकते हैं। ” सभी निधि का दृढ़ निश्चयी चेहरा आवाक देख रहे थे।
अगले दिन निधि अपनी माँ से फोन पर बात कर रही थी और संयोग से शांति उसके कमरे की तरफ़ से ही गुजर थी इसीलिए वह आवाज़ सुनकर ठिठक गई। उधर की आवाज़ तो सुनाई नहीं दे रही थी लेकिन निधि के उत्तर से उसकी माँ के प्रश्न का अंदाजा लग रहा था। निधि कह रही थी ” जाने दो न माँ, वैसे भी मैं मायके से दहेज लेकर नहीं आई थी तो बहुत सुनना पड़ता था अब चलो दहेज में यही सही” । कम से कम मम्मी जी मुझे ताना तो नहीं मारेगी न?
निधि की बातें सुनकर शांति वहीं बुत बनी खड़ी रह गई और उसकी आँखों से पश्चाताप की अश्रु बूंदें स्वतः ही छलकने लगीं ।उसे लगने लगा कि सच में उसकी बहु सुघड़ है इसलिए उसने निश्चय किया कि आज से वह अपनी बहु को खरी – खोटी नहीं सुनायेगी। शांति समझ चुकी थी कि बेटे – बहु और पति की जिद्द के आगे उसकी एक न चलने वाली है इसलिए उसने अपना सास वाला रुख अख्तियार करते हुए बहु से फोन छीनते हुए उसकी मां से कहा –
” समधन जी, क्या हम इतने गये – गुजरे हैं कि बहु से दहेज की जगह पर किडनी लेंगे। अरे मेरा वैसे भी साठ साल से ऊपर उम्र हो गया है और मैंने अपनी सारी जिम्मेदारी भी पूरी कर ली है। अपनी बेटी को ज़रा समझाइये कि ज्यादा महान बनने की कोशिश न करे, मैं डाइलिसिस पर भी जिंदा रह सकती हूँ। और वैसे भी आप्रेशन करवाकर भी कौन जाने कि सक्ससेज हो ही जायेगा। आप मेरी बात समझ गईं न? “
निथि ने अपनी सास का सास वाला रूप देखकर उस समय चुप रहना ही उचित समझा इसलिए वह धीरे से वहाँ से किचेन में चली गई और वहाँ से चाय बनाकर लेती आई और आपनी सास को पकड़ते हुए कहा – ” मम्मी जी आप अपनी जिम्मेदारी पूरी कहाँ कर लीं? अभी तो आपकी बहुत सी जिम्मेदारियाँ बाकी हैं।
निधि की बातें सुनकर शांति ने उससे पूछा -” तो तुम मुझे मेरी जिम्मेदारी समझाओगी। अच्छा बताओ तो मैंने अपनी कौन सी जिम्मेदारी नहीं पूरी की? “
निधि -” मम्मी जी आपको अपने पोते – पतियों की भी तो जिम्मेदारी निभानी है। बताइये भला… मेरी डाॅक्टर से बात हो चुकी है। सर्जरी के बाद से आप सामान्य जीवन जी सकती हैं। और मैं भी एक किडनी पर सामान्य जीवन जी सकती हूँ। प्लीज माँ जी आप अपनी इस बेटी को माफ कर उसकी अर्जी स्वीकर कर लीजिए।” निधि की बातें सुनकर शांति ने उसे गले लगा लिया। और दोनों की आँखें बरबस ही बरस पड़ीं।

*किरण सिंह

किरण सिंह जन्मस्थान - ग्राम - मझौंवा , जिला- बलिया ( उत्तर प्रदेश) जन्मतिथि 28- 12 - 1967 शिक्षा - स्नातक - गुलाब देवी महिला महाविद्यालय, बलिया (उत्तर प्रदेश) संगीत प्रभाकर ( सितार ) प्रकाशित पुस्तकें - 20 बाल साहित्य - श्रीराम कथामृतम् (खण्ड काव्य) , गोलू-मोलू (काव्य संग्रह) , अक्कड़ बक्कड़ बाॅम्बे बो (बाल गीत संग्रह) , " श्री कृष्ण कथामृतम्" ( बाल खण्ड काव्य ) "सुनो कहानी नई - पुरानी" ( बाल कहानी संग्रह ) पिंकी का सपना ( बाल कविता संग्रह ) काव्य कृतियां - मुखरित संवेदनाएँ (काव्य संग्रह) , प्रीत की पाती (छन्द संग्रह) , अन्तः के स्वर (दोहा संग्रह) , अन्तर्ध्वनि (कुण्डलिया संग्रह) , जीवन की लय (गीत - नवगीत संग्रह) , हाँ इश्क है (ग़ज़ल संग्रह) , शगुन के स्वर (विवाह गीत संग्रह) , बिहार छन्द काव्य रागिनी ( दोहा और चौपाई छंद में बिहार की गौरवगाथा ) ।"लय की लहरों पर" ( मुक्तक संग्रह) कहानी संग्रह - प्रेम और इज्जत, रहस्य , पूर्वा लघुकथा संग्रह - बातों-बातों में सम्पादन - "दूसरी पारी" (आत्मकथ्यात्मक संस्मरण संग्रह) , शीघ्र प्रकाश्य - "फेयरवेल" ( उपन्यास), श्री गणेश कथामृतम् ( बाल खण्ड काव्य ) "साहित्य की एक किरण" - ( मुकेश कुमार सिन्हा जी द्वारा किरण सिंह की कृतियों का समीक्षात्मक अवलोकन ) साझा संकलन - 25 से अधिक सम्मान - सुभद्रा कुमारी चौहान महिला बाल साहित्य सम्मान ( उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ 2019 ), सूर पुरस्कार (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान 2020) , नागरी बाल साहित्य सम्मान बलिया (20 20) राम वृक्ष बेनीपुरी सम्मान ( बाल साहित्य शोध संस्थान बरनौली दरभंगा 2020) ज्ञान सिंह आर्य साहित्य सम्मान ( बाल कल्याण एवम् बाल साहित्य शोध केंद्र भोपाल द्वारा 2024 ) माधव प्रसाद नागला स्मृति बाल साहित्य सम्मान ( बाल पत्रिका बाल वाटिका द्वारा 2024 ) बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से साहित्य सेवी सम्मान ( 2019) तथा साहित्य चूड़ामणि सम्मान (2021) , वुमेन अचीवमेंट अवार्ड ( साहित्य क्षेत्र में दैनिक जागरण पटना द्वारा 2022) जय विजय रचनाकर सम्मान ( 2024 ) आचार्य फजलूर रहमान हाशमी स्मृति-सम्मान ( 2024 ) सक्रियता - देश के प्रतिनिधि पत्र - पत्रिकाओं में लगातार रचनाओं का प्रकाशन तथा आकाशवाणी एवम् दूरदर्शन से रचनाओं , साहित्यिक वार्ता तथा साक्षात्कार का प्रसारण। विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों पर अतिथि के तौर पर उद्बोधन तथा नवोदित रचनाकारों को दिशा-निर्देश [email protected]