ग़ज़ल
बात जो मन की बताए वो हवा भी तो चले
कौन क्यूँ मुझसे ख़फ़ा है ये पता भी तो चले
साँस लेना दिल धड़कना ही तो बस काफ़ी नही
ज़िन्दगी में ज़िन्दगी का सिलसिला भी तो चले
हर सफ़र में दूर तक मुझको ख़िजा मंज़ूर है
साथ मेरे कुछ कदम लेकिन फ़िज़ा भी तो चले
मानता हूँ धर्म बिन कुछ भी नही है ज़िन्दगी
धर्म में पर धर्म वाला कायदा भी तो चले
कुर्सियों पर झूठ का दावा रहेगा कब तलक
अब यहाँ कुछ दौर सिक्का सत्य का भी तो चले
आदमी जन्नत ख़ुदा से माँगता तो है मगर
आदमी इंसांनियत का रास्ता भी तो चले
— सतीश बंसल