कलम कभी न मरने पाए
चाहे साँस मेरी रूक जाए
गगन धरा तक भी झुक जाए
वीणापाणि माँग रहा वर
कलम कभी ना मरने पाए।
लानत है मुझ पर गर भुलूँ,
देशभक्तों की अमर कहानी
उस पल कलम मेरी मर जाए,
व्यर्थ हो रही जब कुरबानी
गिरे धरा पर बिजली अगनित
पर ये कलम ना गिरने पाए
वीणापाणि माँग रहा वर
कलम कभी ना मरने पाए।1
नश्वर तन है, पर इस मन को
मात ! मेरी ना मरने देना
मेरी मसि की बूँद-बूँद में
वीणा के सब स्वर भर देना
आज लगाऊँ धार कलम पर
ये तलवार ना डरने पाए
वीणापाणि माँग रहा वर
कलम कभी ना मरने पाए।2।
संभव है कल जगत रहेगा
पर मेरा यह रूप ना होगा
गीत रहेंगे मेरे जीवित
धूप-छाँह का खेल ना होगा
सुरभित रहे युगों-युगों तक
शब्द-सुमन ना झरने पाए।
वीणापाणि माँग रहा वर
कलम कभी ना मरने पाए। 3।
जन्म अगर दोबारा हो तो
आज यही वरदान मैं चाहूँ
जन्मदिवस पर आज शारदे
मन चाहा उपहार ये पाऊँ
जनम-जनम तक मातृभूमि
आशीष सदा ही सिर धरने आए
वीणापाणि माँग रहा वर
कलम कभी ना मरने पाए।4।
मातृभूमि का कण-कण
— शरद सुनेरी