आशियाने की ख्वाहिश
आज़ इस बात पर गुफ्तगू चल रही है,
अपनी हिफाजत ख़ुद ही हो,
इसकी तैयारी चल रही है,
बस एक उम्मीद पैदा हो,
इसकी सोहबत में कुछ शरारती अंदाज में,
ज़मीं की खोज की कोशिश की जा रही है।
आज़ जमीं कहां है,
बड़ी महंगी हो गई यह सौदा है,
मजबूती से ख़ोज की जा रही है,
दिक्कत है कि,
दिल में जगह नहीं दी जा रही है।
लोग कहते हैं कि ज़िन्दगी में,
खुशियां बस अपने आशियाने में ही मिलती है,
इस जहां में नसीबवाले को ही,
इस मंज़र की उम्मीदें कायम रहे,
कुछ-कुछ ही नसीबवाले को दिखाई देती है।
पुराने गाने व खुद से ज्यादा भरोसेमंद दोस्त ही,
झुर्रियां पड़ जाने पर भी,
खिदमत करने से परहेज़ नहीं करते हैं।
उम्मीदों को जिन्दा रखकर,
दूरियां नहीं नजदिकियां बढ़ाने में,
सबसे आगे रहते हैं।
दुःख बांटने की कोशिश हमेशा,
कुछ हमदर्दी जताने वाले करते हैं।
फिर खुद की नजर में दोस्त का,
आशियाना क्या गुलजार हुआ,
बस खामोशियों में शामिल होकर,
खफा होकर यूं ही जल्दीबाजी में,
घर छोड़कर निकल जाते हैं।
नफ़रत करने वाले लोगों से,
दूरियां बनाने की कोशिश मत करें यहां।
हकीकत है ज़िन्दगी के इस खेल में,
समझदारी बिल्कुल नहीं है,
अक्सर लोग कहते हैं यहां।
वैसे लोगों की वजह से तुम आज़ कामयाब हो,
नफ़रत करने को बस दिल से हमेशा दुआ दो।
— डॉ. अशोक, पटना, बिहार