तपस
अब न वो पहले जैसी
मिलने की तपस रही
वो वो न रहे
हम हम न रहे
मिल जाते हैं जब कभी
किसी मोड़ पर
चुरा लेते हैं वो नज़र
हम भी नज़र चुरा
किनारा कर लेते हैं
एक वह भी ज़माना था
बेकरार रहते थे
मिलने को एक दूसरे से
रिश्तों में वह गर्माहट थी
न दिन देखते थे न रात
एक ही ललक थी
हो जाये उनसे मुलाक़ात