कहानी

कहानी – पुत्र मोह

सुरमू बच्चपन से ही शरारती था वैसे उसका स्कूल का नाम सुरम सिंह था लेकिन सभी उसे सुरमू ही बुलाते थे। उसके पिता नसीब सिंह सरकारी स्कूल में जे बी टी मास्टर थे।पूरे इलाके में उनका अच्छा रुतवा था । राजपूत थे अतः अखड़ स्वभाव के थे। घर में ज़मीन काफी थी लेकिन ज़मीन का काम दूसरे लोगों से ही करवाते थे।उन्हें मास्टर जी के नाम से ही जाना जाता था।उनके पढ़ाये हुए कई विद्यार्थी अच्छे अच्छे पदों पर आसीन थे।उनके पहली संतान दो बेटियाँ सुनंदा व सुगंधा थी जो जुड़वां थी तथा सुरमू उनसे छोटा था।सुरमू की शरारतें दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी।घर का इकलौता बेटा होने के कारण न तो उसके पिता मास्टरजी ही कुछ कहते थे न ही उनकी पत्नी ममता के कारण कुछ कह पाती थी।उन्हें लगता था कि सुरमू अभी बच्चा है।जब बड़ा होगा तब सुधर जाएगा ।गांव में प्राथमिक पाठशाला से उसने पांचवीं कक्षा पास कर ली उसके बाद उसे उच्च पाठशाला में दाखिल करवा दिया गया जो घर से चार किलोमीटर की दूरी पर थी।प्रतिदिन सुरमू अपने दोस्तों के साथ स्कूल आता जाता था।सब दोस्तों की टोली बहुत हुड़दंगी किस्म की थी।शरारतें सभी की नस नस में भरी हुई थी।

सुरमू के घर के पास ही एक खड्ड बहती थी जिसमें बरसात में बहुत पानी आता था तथा खड्ड से आर पार जाना बहुत मुश्किल हो जाता था।सुरमू व उसके दोस्त प्रतिदिन खड्ड में नहाने के लिए जाते थे अतः सुरमू ने धीरे धीरे तैरना भी सीख लिया था। खड्ड में कई लोग अवैध तरीके से मछलियां मारते थे जिसके लिए कई बार तार से करंट लगाते थे तथा कई बार डेटोनेटर व जेलेटिन(स्थानीय भाषा में ग्रेनेड) का इस्तेमाल करते थे।सुरमू यह सब जानता था क्योंकि जब भी मछली मारी जाती थी वह भी मछलियां पकड़ने खड्ड में घुस जाता था । हालांकि मछली मारने के यह दोनों ही तरीके जानलेवा भी साबित हो सकते थे लेकिन इस खतरे से अनभिज्ञ लोग इस काम को अंजाम देते रहते थे।सुरमू दूसरे लोगों को यह अनैतिक कार्य करते हुए देखता रहता था।अतः सुरमू को भी सब पता था कि करंट कैसे लगाया जाता है तथा कैसे डेटोनेटर का इस्तेमाल करते हैं। यह डेटोनेटर उन्हें ठेकेदारों से प्राप्त हो जाते थे जिन्हें कुछ मछलियां इसके बदले में दे दी जाती थी ।खड्ड के किनारे लगभग छ: घराट भी चलते थे जहां से लोग अपने घरों के लिए आटा ले जाते थे।घराटी कभी कभी जाल फैंक कर या डेटोनेटर चला कर मछलियां पकड़ते थे तथा मास्टर जी को भी पहुंचा देते थे।सुरमू का भी घराट में बहुत आना जाना रहता था।एक बार सुरमू ने घराट के पीछे जाकर बड़े बड़े दो पत्थर उसके पानी वाले पाईप(नालसिरा) में डाल दिये जो उसके टर्बाइन में फंस गए जिससे पानी रुक गया तथा घराट के अंदर घुस गया।घराट में रखा सारा अनाज व आटा खराब हो गया।घराटी को जब पता चला तो इसकी शिकायत घराट के मालिक ने मास्टर जी से की लेकिन उन्होंने कोई ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।एक दिन तो हद ही हो गई जब सुरमू  ने खड्ड में नहाते समय दुसरे बच्चे के सिर को पानी में डुबो दिया जिससे उस बच्चे की सांस रुक गई।गनीमत यह रही कि घराटी ने समय पर पहुंच कर उस बच्चे को बचा लिया।हुआ यूं कि नहाते समय सुरमू और उस बच्चे में दूसरे छोर पर पहले पहुंचने की शर्त लग गई।सुरमू इस शर्त में हार गया ।अपनी हार को बर्दाश्त नहीं कर पाया तथा गुस्से में उसने दोस्त का सिर पानी में डुबो दिया। इसकी शिकायत भी मास्टर जी के पास पहुंची लेकिन मास्टर जी पुत्रमोह में फंसने के कारण सुरमू को कुछ नहीं बोल पाते थे।सुरमू इसी कमजोरी का फायदा उठा रहा था।

वैसे तो सुरमू पढाई में ठीक था लेकिन उसकी इन हरकतों से सभी लोग परेशान थे।कक्षा में भी  किसी न किसी बात पर अपने सहपाठियों से झगड़ा करना उसकी आदत बन गई थी।कहते हैं भगवान किये की सजा जरुर् देता है। सुरमू की शरारतों से न केवल घर के लोग बल्कि गांव के लोग भी बहुत दुखी थे।एक दिन सुरमू अपने दोस्तों के साथ स्कूल जा रहा था।रास्ते में चलते चलते सब ने आज स्कूल से आधी छुटी के बाद आने की स्कीम बनाई ।सुरमू ने कहा कि आज खड्ड में मछली मारेंगे ।मेरे पास सब समान है उसके दोस्तों ने पूछा कि क्या सामान है तो सुरमू ने बताया कि उसके पास 2 डेटोनेटर हैं जिससे हम आज मछली मारेंगे ।सब लोग बहुत खुश थे कि आज सारी की सारी मछलियां हम अपने पास रखेंगे । सब लोग स्कूल पहुंच गए । स्कूल में दूसरा पीरियड चल रहा था । अभी लगभग 10:30 ही बजे थे । सुरमू की कक्षा बाहर धूप में लगी हुई थी तथा सब बच्चे पीपल के पेड़ के नीचे चट्टाईयों के ऊपर बैठे हुए थे । सुरमू कक्षा के बिल्कुल केंद्र में बैठा हुआ था । अध्यापक पढ़ाने में व्यस्त थे लेकिन सुरमू के मन में कुछ और ही चल रहा था । सुरमू बार बार अपने बैग में रखे डेटोनेटर को देख रहा था। थोड़ी देर के बाद ही सुरमू ने अपने बैग में रखे ज्योमेट्री बॉक्स में से चुपके से प्रकार को निकाला और डेटोनर को उससे छेड़ने लग गया । अचानक से जोर का धमाका हुआ । पूरी कक्षा में खलबली मच गई । अन्य कक्षाओं से भी अध्यापक भागे भागे सुरमू की कक्षा की ओर दौड़े । आखिर हुआ तो क्या हुआ । कोई एकदम से समझ नहीं पा रहा था।तभी एक बच्चे ने बताया कि सुरमू का हाथ धमाके में उड़ गया है।  डेटोनेटर से छेड़छाड़ करते अचानक डेटोनेटर फट गया और सुरमू का दायां हाथ 50 फुट ऊपर उछल कर नीचे सड़क में जा गिरा । पूरी क्लास में हाहाकार मचा हुआ था। उसके साथ बैठे तीन अन्य छात्रों को भी मामूली चोटें आई थी ।सुरमू पूरी तरह खून से लथपथ था और जोर जोर से रो रहा था । अध्यापकों ने एकदम से उसके बाजू के ऊपर एक कपड़ा कसकर बांध दिया तथा उसको उठाकर  तुरंत हॉस्पिटल ले गए। जरूरी उपचार देने के बाद  उसे जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया। सुरमू के बाजू से लगातार खून बह रहा ।खून ज़्यादा बह जाने के  कारण सुरमू बेहोश हो चुका था । जिला अस्पताल पहुंचने के लिए लगभग तीन घंटे लगे।वहां पहुंचने पर तुरंत उसे ग्लूकोस लगाया गया तथा उसका ऑपरेशन किया गया। इस बीच पुलिस को भी सूचना मिली कि स्कूल में एक बच्चा घायल हो गया है।पुलिस भी आधे घंटे के बाद स्कूल में पहुंच गई तथा अध्यापकों के व अन्य बच्चों के बयान दर्ज किए। पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया तथा छानबीन में जुट गई कि बच्चे के पास डेटोनेटर आखिर आया कहां से।सुरमू इस हालत में नहीं था कि उसका बयान पुलिस दर्ज कर पाती। जिला अस्पताल में सुरमू का इलाज काफी दिन तक चला तथा डॉक्टरों की मेहनत से वह बच गया लेकिन उसका एक हाथ पूरी तरह से कट गया जिसे दोबारा नहीं जोड़ा जा सका । लगभग तीन महीने के बाद सुरमू वापिस घर पहुंचा।मास्टर जी बहुत दुखी थे तथा खुल कर कुछ नहीं कह पा रहे थे लेकिन मन ही मन सुरमू के साथ हुए हादसे के लिए अपने आप को जिम्मेवार मान रहे थे। यदि समय रहते सुरमू को गलत कामों से रोका होता तो आज यह दिन नहीं देखने पड़ते।मास्टर जी सुरमू के पास बैठ कर उसे हौसला दे रहे थे तथा उसका मनोबल ऊंचा रखने की कोशिश कर रहे थे।धीरे धीरे समय बीतता गया ।सुरमू में अब बहुत बदलाव आ गया था। मास्टर जी ने उसका बहुत मनोबल बढाया। सुरमू की नई जिंदगी शुरू हुई। उसने हिम्मत नहीं हारी तथा दूसरे हाथ से लिखना शुरू किया।पहले अच्छे नम्बरों में मैट्रिक पास की,उसके पश्चात बी ए तथा स्नातकोत्तर परीक्षा पास की।उसके पश्चात सुरमू को सरकारी नौकरी मिल गई।शादी के पश्चात दो सुंदर बेटे भी हो गए।अब वह पूरी तरह बदल गया था तथा एक अच्छा इंसान बन गया था। मास्टर जी का सुरमू को गलत काम के लिए भी न डांटना आज बहुत महंगा पड़ा था।यदि समय रहते उन्होंने पुत्र मोह को त्याग कर सुरमू को सही राह दिखाई होती तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता। 

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र