मासूमियत से
मासूमियत से जवाब देते हुए,
उम्मीद थी कि कुछ सुकून मिलेगा यहां।
तक़दीर बदलने में,
कुछ हमदर्दी जताते हुए,
कुछ सुकून मिलेगा यहां।
बेदर्द ज़माने से,
लड़ते-लड़ते थक गया था मैं यहां।
उम्मीद जगा था कि,
कुछ लोग हमदर्दी जताते हुए,
मेरी मदद करेंगे यहां।
मासूमियत से जवाब तलब किया तो,
कुछ लोग इसे खिदमत करने की,
तरीके मानने लगे।
हमसफ़र बनकर तैयार रहने की जगह,
बड़ी सियासी ताकत दिखाने लगे।
आज़ इस मासूम चेहरे पर,
जो यकीं था वह खत्म हो गया।
एतबार छोड़कर चले गए,
सब कुछ खत्म हो गया।
इस इल्म को हासिल करने में,
हमेशा वक्त लगता है।
हमें आगे बढ़ने में इन्सानियत को बरकरार रखने का,
सही क़दम उठाने का,
जुनून नहीं दिखता है।
— डॉ. अशोक, पटना