कविता

हलचल

गुमसुम तेरी आँखों की हलचल
कर देती है दिल को घायल
छन छन बजती जब तेरी पायल
मैं तेरा प्रेमी हो जाता हूँ पागल

वो पीपल की छाँव थी सुहानी
जहाँ लिखे थे हम अपनी प्रेमकहानी
गाँव जवार में थी हर एक की जुवानी
शर्मसार हो गई थी मेरी नानी

चंचल थी वो किरणों का साया
अंबर से उतरे थे अपनी दो काया
इस जीवन में तुमको मैं आज पाया
हर जन्म में हूँ मैं साथ निभाया

अखबारों में छ्पी थी अपन कहानी
बच्चे बुढ़े की थी चर्चा मेरी जॉनी
जैसे दरिया में है संग संग पानी
बने रहेगें हर जन्म में हम दो दीवानी

फिजां में घोल दो कोई ढेर सारे भंग
रंग दो प्रेम रंग में हमें संग संग
जमाना देख हो जाये तब दंग
जीने मरने के वादे बन जाये छ्न्द

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088

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