कविता

मंजिल पाना है अभी बाकी!

मैं सागर की नाव पुरानी,
है मेरी अनबूझ कहानी,
तूफानों से टकरा न पाती,
संभालो मुझे हे राम-वरदानी।

केवट बनकर आना प्रभु,
नैय्या पार लगाना प्रभु,
भवसागर से पार-लगैया,
मुझको भूल न जाना प्रभु।

सुख-दुःख आनी-जानी माया,
जैसे धूप कभी, कभी छाया,
जानकर भी रही अनजानी,
शरण पड़ी तेरी हे रघुराया।

उछल-उछलकर गोते खाती,
तेरे ही बल पर बढ़ती जाती,
रघुकुलनंदन राम-रमैया,
मंजिल पाना है अभी बाकी!

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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