कविता

भाई संविधान बचाओ

उन्होंने अनुमति विहीन सभा बुलाया,
जोरदार मजहबी नारा लगाया,
नारे के द्वारा और मजहबियों को हड़काया,
और कुटिलतापूर्ण गर्व से बताया,
अब इस जगह हमारा चलेगा,
विरोधियों का कोई दाल नहीं गलेगा,
क्योंकि अब सब कुछ हमारे हाथ है,
हम एक हैं सब साथ हैं,
भाषण मारते मारते गला सूखने को आया,
इशारे से पानी मंगाया,
विरोधी पानी देने से झिझक रहा था तो
एक अछूत ने पानी बोतल पकड़ाया,
अब तो बहुत बड़ा बवाल हो गया,
उस सज्जन का धर्म भ्रष्ट हो गया,
बोले अभी हमारे धर्म में
ऐसा दिन नहीं आया है,
कि किसी उच्च ने वंचितों के घर खाया है,
मारो इस अछूत को चार लात,
घुसाओ इनके मोटे दिमाग में बात,
कि हम एक हैं कह देने से
ये अस्पृश्य लोग हमारे बराबर नहीं हो जाते,
ये मार खा खा कर भी क्यों समझ नहीं पाते,
हम प्राचीन परंपरा तोड़ नहीं सकते,
अपने संस्कार ऐसे ही छोड़ नहीं सकते,
इसीलिए इन्हें जबरदस्त मार दे कर समझाओ,
ये सिर्फ हमारे सेवक है इन्हें बताओ,
उस देशभक्त की बातों को सबने स्वीकार किया,
धर्मोत्थान के नारे का उद्गार किया,
उस पानी देने वाले का सारा खुमार उतर गया,
उनके आस्थाई बुखार उतर गया,
और फिर वो सोचने लगा कि मैं कौन हूं,
क्यों अभी तक अनजान और मौन हूं,
तब तक सामने वाले धार्मिक व्यक्ति को
इनकी जाति और धर्म में स्थान दिख गया था,
और वो शान से छुआछूत की बातें सीख गया था
इसलिए कहो जिनका धर्म है वो उसे बचाये,
हम संविधान से हैं अतः सब संविधान बचाये।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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