शिवशक्ति
भंग ऊपर पान का खाए निवाला ,
झटका देता हरेक घूट का प्याला ।
खाये छोटे-बड़े सभी शिव मतवाला ,
अनाथ के नाथ है विश्वनाथ रखवाला ।।
सब सुनते कालभैरव,भोले भण्डारी,
काशी विराजते विश्वनाथ त्रिपुरारी |
गले में सर्प, सिर पर गंगा विराजे रे
शाश्वत सदाशिव गौरी अर्ध अंगकारी ||
भस्म लगा लेकर चले भूतों की टोली,
अडभंगी धतूरा खा हो गए मस्त मौली,
खेलते रंग गुलाल और राख की होली,
ब्याहन चले शम्भू लेकर प्रेम की रोली ।
बोल बम-बम से गूँजे है आज बनारस,
अविरल बहे गंग धार निरंतर प्रवाह रस ।
शिवशक्ति भक्ति की शक्ति है दिव्यमान ,
पुराणों में काशी प्रयाग जल अमृत रस ।।
काशीसुता ‘प्रतिभा’ बनारसी रंग-ढंग सी,
गंगाजल सी तरल, सरल मतवाली भंग सी ,
प्रेम तरुणाई, महासागर से भी गहराई-सी ,
बात इतनी सी, सीधी साधी वाराणसी-सी |
— प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”