स्मार्ट राजस्थान बनाएं : तभी साकार होगा विकसित राजस्थान का संकल्प
स्मार्ट से तात्पर्य है प्रत्येक इकाई से लेकर परिवेश तक में चुस्ती, स्फूर्ति और निरन्तर रचनात्मक गतिशीलता के साथ प्रगति दिखे और हरेक प्रदेशवासी को भीतर तक यह अच्छी तरह महसूस भी हो। उत्तरोत्तर विकास और परिवेशीय सौन्दर्य के आनन्ददायी सुकून का अनुभव हो, साथ ही अनवरत सक्रियता के साथ उन्नयन की धाराओं का वेग भी निरन्तर बढ़ता रहे, नवीन से नवीन प्रयोगों और प्रगतिकारी एवं उपलब्धिमूलक नवाचारों का लाभ सभी को प्राप्त हो तथा विहंगम दृष्टिपात करने पर व्यापक फलकों पर सुनहरे परिवर्तन से अभिभूत हुए बिना नहीं रहा जा सके।
स्मार्ट सिटीज और स्मार्ट विलेज की अवधारणा को और अधिक व्यापकता देते हुए विकसित राजस्थान की कल्पना को संजोकर सोचा जाए तो आज ऐसे राजस्थान की आवश्यकता है जो हर दृष्टि से स्मार्ट हो। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के विकसित भारत की संकल्पनाओं को मूर्त्त रूप प्रदान करने में राजस्थान कई मायनों में अपनी सशक्त भागीदारी निभाने में सर्वसमर्थ है।
इसके लिए विकसित राजस्थान के लक्ष्य को पाने समर्पित, समन्वित एवं सामूहिक शक्ति से काम करने की आवश्यकता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति में मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में राजस्थान हर मोर्चे पर प्रगतिगामी सोच और नवीन कार्यक्रमों, नवाचारों एवं अभियानों के साथ जुटा हुआ है।
प्रदेश की छोटी से छोटी इकाई के रूप में हर आदमी अपने आपमें स्मार्ट बने और हर क्षेत्र में विकास के तमाम आयामों के साथ ही सामाजिक सरोकारों का ऐसा कल्याणकारी परिदृश्य सामने आए जिसमें किसी को कुछ भी कहने या कहलवाने की जरूरत न पड़े, जहां मांग के अनुरूप आपूर्ति का क्रम अनवरत बना रहे, कोई अभावों में जीने को विवश न रहे, किसी के जीवन में समस्या न रहे।
हर इंसान की बुनियादी जरूरतों में कहीं कोई कमी न आने पाए। व्यक्ति-व्यक्ति परिश्रमी होकर स्वावलम्बी बने, आत्मनिर्भरता पाए ताकि किसी को भी अपने जीवन निर्वाह के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़े। ऐसा होने पर ही स्मार्ट एवं विकसित राजस्थान की संकल्पनाओं को साकार किया जा सकता है।
हर प्रदेशवासी की समर्पित भागीदारी जरूरी
स्मार्ट राजस्थान के इतने विराट स्वप्न को साकार करना केवल सरकार या व्यवस्था से जुड़े तंत्र, ग्राम्य संरचनाओं अथवा शहरी निकायों के बूते नहीं हो सकता। इसके लिए हरेक को बदलाव लाने में भागीदारी निभानी होगी। प्रत्येक स्तर पर अपने आपको स्मार्ट बनने के लिए प्रयत्न करने होंगे तथा हर इलाके में सभी एजेन्सियों को मिलकर इस एक सूत्री कार्यक्रम के साथ आगे आना होगा कि हमारा अपना राजस्थान देश का पहला स्मार्ट स्टेट बनने का गौरव कैसे प्राप्त करे।
कुछ छोड़ें, नया अपनाएँ
आत्मीय सहभागिता, स्वैच्छिक कर्मयोग, समर्पित सेवाओं और प्रादेशिक गौरव की भावना के साथ पहल की जाए तो यह कार्य अत्यन्त आसान और जल्दी हो सकेगा। इसके लिए हम सभी को कुछ न कुछ त्याग भी करना होगा, कुछ नई आदतों को अपनाना होगा, पुरानी धारणाओं और दकियानूसी ढीली-ढाली परंपराओं को तिलांजलि देनी होगी। सामूहिक जिम्मेदारी और टीम भावना से प्रगतिकारी नवीन आयामों को खुले मन से आत्मसात करने की आवश्यकता है।
स्मार्ट का आशय समझें
स्मार्ट से तात्पर्य आधुनिक चकाचौंध भरा और भौतिक विकास नहीं है जहाँ केवल सब्जबाग दिखाकर और सीमेंट, कंक्रीट और लौह-लक्कड़ के बहुमंजिला और आकर्षक भवनों और मनोहारी संरचनाओं का निर्माण कर देना नहीं है। न ही विदेशों का अंधानुकरण या नकल करते हुए मनोरम दृश्यों को दर्शा देने तक अथवा विदेशियों के अनुरूप अपने क्षेत्रों को ढाल देना है।
विकसित राजस्थान बनाने से पूर्व स्मार्ट राजस्थान का परिदृश्य दर्शाने का अर्थ यह है कि आम जन सुख-समृद्धि और सुकूनपूर्वक स्वाभिमान एवं आत्मगौरव के साथ सहज जीवनयापन कर सके और जीवन का आनंद पा सके और प्रदेश के गांवों एवं शहरों की साफ-सुथरी और स्वच्छ छवि दर्शायी दे जहां हर द्रष्टा को सुखद अनुभूति हो। चाहे वह स्थानीय हो अथवा बाहरी।
लोक और तंत्र दोनों का स्मार्ट होना जरूरी
इसके लिए लोक और तंत्र दोनों को स्मार्ट बनने की आवश्यकता है। हर आदमी अपने आपको इस प्रकार ढाले कि उसके जीवन के हर पहलू में सकारात्मक बदलाव के साथ अपने आपके स्मार्ट होने की अनुभूति हर क्षण बनी रहे।
इसके लिए अपने वैयक्तिक स्वार्थों और संकीर्ण मनोवृत्तियों को त्यागने के साथ ही राजस्थान के लिए हर वांछित त्याग करने की जरूरत है। लोक की तंत्र के प्रति श्रृद्धा और गहरी आस्था हो तथा तंत्र का लक्ष्य जन कल्याण हो।
तंत्र में पारदर्शिता सर्वोपरि कारक
तंत्र जितना अधिक ईमानदार, समर्पित और पारदर्शी होगा, उतना लोक में उसका आलोक पसरता रहेगा अन्यथा तंत्र के भ्रष्टाचारी, अन्यायी और पक्षपाती होने की स्थिति में सकारात्मक बदलाव की बातें करना पूरी तरह बेमानी ही हैं। इस मामले में लोक और तंत्र दोनों के आचरणों में पवित्रता और सोच में मंगलकारी दृष्टि का होना जरूरी है।
हर कोई निभाए अपने दायित्व
जो इंसान जहां जिस किसी काम में लगा हुआ है उसे प्रदेश की सेवा में समर्पित होने की जरूरत है। अपने हर काम में गुणवत्ता देने तथा काम के निर्धारित समय का पूरा उपयोग प्रदेश की सेवा के लिए करते हुए इसे और अधिक स्मार्ट बनाने के लिए समय और हुनर देने की आवश्यकता है। हर प्रदेशवासी अपने कर्त्तव्य को ईमानदारी, निष्ठा एवं पारदर्शिता को पूरा करने की ठान ले तो विकसित राजस्थान बनने की दिशा में आधे से अधिक सफलता केवल इसी से प्राप्त हो सकती है।
नया प्रयोग ला सकता है सुनहरा मंजर
विकसित राजस्थान बनाने में तंत्र की जिम्मेदारी सर्वाधिक एवं अहम् है। प्रदेश में हुनरमंद और विलक्षण मेधा-प्रज्ञा संपन्न व्यक्तियों की कोई कमी नहीं है लेकिन इनका या तो भरपूर उपयोग नहीं हो पा रहा है अथवा ये प्रतिभाएं पलायनवादी मानसिकता का शिकार हो गई हैं।
प्रदेश के सरकारी तंत्र में भी मेधावी व्यक्तित्वों की कोई कमी नहीं है। लेकिन इनके साथ समस्या यह है कि ये लोग जिस हुनर में दक्ष हैं अथवा इनकी जो रुचि है, उसके मुताबिक काम न होकर केवल जीवन निर्वाह के लिए विवश होकर उन दूसरे कामों में लगे हुए हैं जिनमें उनकी रुचि नहीं है अथवा उनकी प्रतिभा का कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है।
प्रदेश में सरकार के स्तर पर यह निर्णय ले लिया जाए कि समान वेतन और श्रेणी के आधार पर राज्यकर्मियों से विकल्प पत्र भरवा कर उन्हें उन सेवाओं से जोड़ा जाए जिनमें उनकी दक्षता और रुचि है तथा उनकी दिली इच्छा भी है कि उनके लायक काम मिले।
इससे प्रदेश की प्रतिभाओं को उनके योग्य तथा रुचिकर सेवाओं का लाभ मिलेगा और इसका फायदा प्रदेश को स्मार्ट राजस्थान के रूप में विकसित करने के प्रयासों को ख़ासा सम्बल प्रदान करने वाला सिद्ध होगा।
जो जिसके लायक है, जिसमें जो मौलिक प्रतिभा है उसे उसी के अनुरूप काम दिया जाए तो बेहतर गुणवत्ता और कम समय में अधिक उपलब्धियों को प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए योग्यताओं के अनुरूप एक से दूसरी सेवा में नौकरी की सुविधाओं का रास्ता खोल देना चाहिए।
स्थानीयता का पूरा ध्यान रखने की जरूरत
विकसित राजस्थान बनाने के प्रयासों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए यह जरूरी है कि विदेशों की नकल की आदत सामने न आए। यहाँ के हरेक क्षेत्र की भौगोलिक, सामाजिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और राजनैतिक स्थितियां अलग-अलग हैं और इन्हीं को सामने रखकर समग्र विकास की रूपरेखा बनानी जरूरी है।
मैदानी और रेगिस्तानी क्षेत्रों, नदी-नालों और पर्वतों वाले इलाकों, सिंचित एवं असिंचित क्षेत्रों आदि सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बहुआयामी विकास की आवश्यकता है। बिजली की दृष्टि से राजस्थान में सौर और पवन ऊर्जा की अपार संभावनाओं को देखते हुए इन पर अधिकाधिक जोर दिये जाने की जरूरत है।
आँचलिक पर्यटन को मिले मजबूती
इसी प्रकार पर्यटन के क्षेत्र में राजस्थान अत्यन्त समृद्ध है। इस दृष्टि से प्रदेश को विभिन्न क्लस्तरों में विभक्त कर वहाँ के आंचलिक पर्यटन विकास को गति देने की जरूरत है। ख़ासकर आदिवासी क्षेत्रों में जनजातीय संस्कृति और परंपराओं, पर्वतीय मेलों-पर्वों-उत्सवों और साल भर चलते रहने वाले विविध बहुरंगी आयोजनों को जोड़कर ट्राईबल टूरिज़्म की संभावनाओं को आकार दिया जा सकता है।
राजस्थान के हर क्षेत्र में अपना विलक्षण पर्यटन पैकेज व केन्द्र हो सकता है। समग्र विकास के साथ स्मार्ट राजस्थान निर्माण के लिए यह जरूरी है कि आंचलिक जरूरतों के अनुरूप संभावनाओं की तलाश की जाकर स्मार्ट स्वरूप दिया जाए।
लोक जीवन की बुनियाद मजबूत हो
विकसित राजस्थान के लिए किसी चमक-दमक भरे परिवेश को दर्शाने की जरूरत नहीं है बल्कि आम आदमी के लिए जरूरी बुनियादी सुख-सुविधाओं और उसके रोजमर्रा के सरोकारों की सहज और पर्याप्त सारसंभाल करना आवश्यक है ताकि प्रदेशवासी उन्नत जीवन स्तर के साथ जीते हुए प्रदेश के उत्थान में अपनी भागीदारी अदा करते रहें।
सख्ती बरतनी जरूरी
शासन के स्तर पर बहुत कुछ प्रयास हो रहे हैं लेकिन अब जब हम विकसित राजस्थान की बात करते हैं तब हमें राजस्थान के सर्वांग हित में अपनी ढिलाई और उदारता को त्याग कर सख्त होने की जरूरत है ताकि तंत्र अपना काम सुव्यवस्थित ढंग से कर सके। इसके लिए पहले समझाईश और उसके बाद भी शिथिलता बरतने वालों या गड़बड़ी करने वालों के विरूद्ध ठोस एवं निर्णायक कार्यवाही अमल में लाने की आवश्यकता है ताकि तंत्र की सख्ती और मजबूती का संदेश ठेठ निचले स्तर पर पहुंच सके। इसके लिए सूचना एवं प्रौद्योगिकी के आधुनिकतम नेटवर्क और संसाधनों को अपनाने की जरूरत है।
ईमानदारी से निभाएं राजधर्म
इसके लिए राजधर्म पर सर्वाधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। नौकरी और निर्धारित दायित्वों की पूर्ति के मामले में कामचलाऊ और एक-दूसरे पर टालने अथवा लंबित रखकर अपना समय गुजार देने की मनोवृत्ति पर लगाम कसनी बहुत जरूरी है।
राजधर्म में फिसड्डी, मूक द्रष्टा भाव से बने रहकर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के प्रति आँखें मूंदें बैठे रहने वाले सरकारी अधिकारियों एवं कार्मिकों पर सख्त एवं दण्डात्मक कार्यवाही अमल में लाए बगैर राजस्थान को विकसित करने की दिशा में ज्यादा कुछ हासिल होने वाला नहीं।
राज-काज में हिन्दी पर जोर
यह कहना ठीक ही होगा कि राजस्थान जैसे हिन्दीभाषी राज्य में आज भी राज-काज में अंग्रेजी का वर्चस्व है। कोई भी प्रदेश तभी विकसित बन सकता है कि जब उसके आम नागरिक तक उसकी अपनी भाषा में जानकारी पहुंचे अथवा उसे अपने बारे में सभी प्रकार की जानकारी अपनी भाषा में प्राप्त हो।
आज भी देखा यह जा रहा है कि ऊपरी स्तर के कहे जाने वाले लोग अंग्रेजीदाँ हैं और इस कारण से पत्र व्यवहार, नियमों और कानूनों आदि में अंग्रेजी का प्रभुत्व है। विभिन्न प्रकार के प्रजेन्टेशन्स, प्रोसिडिंग्स, परिपत्र, आदेश, सरकूलर और बहुत सारे दस्तावेजों में आंग्ल भाषा का वर्चस्व है। यहां तक कि राजस्थान और भारत निर्वाचन आयोग के परिपत्र, आदेश, निर्देश भी अधिकतर अंग्रेजी में ही होते हैं।
आम इंसान के लिए ही नहीं बल्कि राज-काज चलाने वालों में भी बहुत से लोग हमारी तरह ऐसे हैं जिन्हें अंग्रेजी पढ़ना-लिखना और बोलना असहज लगता है। इस शाश्वत सत्य के बावजूद अंग्रेजी को इतनी अधिक तवज्जो देना किसी की समझ में नहीं आ पा रहा।
इस स्थिति को देखते हुए यह अनिवार्य किए जाने की जरूरत है कि राज-काज में हिन्दी का ही प्रयोग किया जाए अथवा दोनों भाषाओं का प्रयोग हो। केन्द्र सरकार से आने वाले पत्रों, नियमों और दस्तावेजों में अंग्रेजी का प्रयोग अधिक देखने में आता है। हमारे जन प्रतिनिधि भी इस सत्य को स्वीकारते रहे हैं।
सरकारी मशीनरी में शामिल बुद्धिजीवियों का भी मानना है कि ऐसा होना ठीक नहीं है लेकिन अपने अंग्रेजी के अल्पज्ञान की कलई खुल जाने के आत्म अपराध बोध से ग्रस्त होने के कारण कोई कड़वा सच बोल नहीं पा रहा है। इस सत्य को समझने की आवश्यकता है। राजस्थान को विकसित बनाना है तो सबसे पहले हिन्दी को अपनाना होगा ताकि प्रदेश का हर इंसान सभी प्रकार की गतिविधियों से रूबरू होकर अपनी समझ बना सके।
आँचलिक नामो से जुड़ें हमारी योजनाएं और अभियान
हमारे कई सारे अभियानों, परियोजनाओं और बहुत सी योजनाओं का नामकरण अंग्रेजी शब्दों पर है जबकि इन्हें आंचलिक नाम दिये जाकर लोगों का जुड़ाव और अधिक मजबूत बनाया जा सकता है। अंग्रेजी नामकरण की वजह से जनसमूह का स्वतः स्वाभाविक ध्र्रुवीकरण हो जाता है और अधिकांश समुदाय इससे परहेज करने लगता है। इनके नामों को आंचलिकता के साँचे में ढालने की जरूरत है ताकि जन भागीदारी खुले रूप में और व्यापक स्तर पर सामने आ सके।
भौगोलिकता का ध्यान रखना है जरूरी
विदेशी संरचनाओं की नकल भी प्रदेश के विकसित स्वरूप में बाधक मानी जा सकती है। राजस्थान में पानी-बिजली की समस्या बनी रहती है ऐसे में भवनों का स्वरूप ऐसा होना चाहिए कि हर मौसम में इनका आसानी से उपयोग हो सके। उदाहरण के तौर पर हमारे यहां अस्पतालों, स्कूलों से लेकर सभी प्रकार के राजकीय भवनों का निर्माण विदेशी नक्शों के अनुरूप होने लगा है।
विदेशों में सारे के सारे भवन एयरकण्डीशण्ड होते हैं लेकिन हमारे यहां सभी स्थानों पर एयरकण्डीशन की सुविधा नहीं है। बावजूद इसके भवन निर्माण में विदेशी तकनीक का प्रयोग होने से कक्षों में हवा के आवागमन के लिए पर्याप्त रोशनदान नहीं होते, इस कारण से गर्मी भी होती है और हवा का आवागमन भी नहीं होता। इस वजह से बदबू के भभकों का अस्तित्व बना रहता है। यदि इनकी छतों की ऊँचाई अधिक हो, हवादार रोशनदान हों तो यह समस्या रहे ही नहीं, चाहे बिजली रहे या न रहे। इसे देखते हुए इस प्रकार के भवनों का निर्माण होना चाहिए कि जो हर मौसम में स्वाभाविक रूप से सुकून देने लायक बने रहें।
झलकनी चाहिए राजस्थानी स्थापत्य कला
भवनों के निर्माण में इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि प्रदेश के विभिन्न अंचलों की स्थापत्य और शिल्पकला का दिग्दर्शन हो। हर क्षेत्र के लिए भवनों के अलग-अलग रंग को भी निर्धारित किया जा सकता है। इससे हर क्षेत्र की अन्यतम मनोहारी छवि का दिग्दर्शन भी होगा।
सरकार के स्तर पर यह निर्णय भी लिया जा सकता है कि जो भी सरकारी भवन बनें, उनमें शिलान्यास के समय ही पार्क और पेड़-पौधों का प्लान बना लिया जाए और उसी समय से पौधारोपण और उद्यान निर्माण का काम शुरू कर दिया जाए। निर्माण श्रमिक, पर्याप्त पानी और सुरक्षा की सहज उपलब्धता के चलते जब तक भवन तैयार होगा तब तक हरियाली का सुकूनदायी मंजर भी सामने होगा।
सूचनाओं की पहुंच हो हरेक तक
विकसित राजस्थान की परिकल्पना को साकार करने के लिए यह जरूरी है कि हर प्रदेशवासी को उसके क्षेत्र या उसके लिए सरकार द्वारा संचालित योजनाओं, कार्यक्रमों और परियोजनाओं आदि की पूरी-पूरी जानकारी होनी चाहिए, ताजातरीन सूचनाएं सहज उपलब्ध हों ताकि जनता इनका लाभ खुद भी ले सके तथा अपने क्षेत्र के लोगों को भी दिला सके।
हर स्वीकृत काम और इसके लिए जारी बजट की जानकारी आम जन तक पहुंचाने के लिए सभी प्रचार माध्यमों का उपयोग किया जाना चाहिए। सरकारी सूचना तंत्र के साथ ही हर विभाग की वैब साईट पर सभी प्रकार की जानकारी उपलब्ध हो, ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए। हर तरह के मौखिक आदेशों पर अंकुश लगे तथा हर आदेश ऑनलाईन हो, इस स्तर की पारदर्शिता अपनाने की आवश्यकता है।
श्रव्य-दृश्य माध्यमों पर हो जोर
अब लोगों के पास समय का अभाव है इसलिए इस प्रकार का प्रचार तंत्र विकसित किये जाने की जरूरत है जिसमें कि ऑडियो-विजुअल सामग्री हो ताकि फुरसत के समय इसे देखकर जानकारी पायी जा सके, चलते-फिरते भी सूचनाओं की पहुंच बनी रह सके। समाचारों में उपदेशात्मकता की बजाय सूचनात्मकता स्वीकार की जानी चाहिए ताकि सीधा संदेश लक्ष्य समूह तक पहुंच सके। अब मुद्रित सामग्री, प्रदर्शनियों आदि का कोई प्रभाव देखने में नहीं आता। यह सरकारी धन की बर्बादी से अधिक कुछ नहीं।
संदेश संवहन शैली में बदलाव जरूरी
प्रदेश के प्रचार तंत्र की दृष्टि से सोचा जाए तो आज भी इसमें सुधार की व्यापक गुंजाइश है जिसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ काम करने की जरूरत है। अब आदमी बड़े-बड़े लेखों और समाचारों को पढ़ने का आदी नहीं रहा, जिन्दगी की आपाधापी भरी दौड़ में समय की कमी के दौर में उसे थोड़े से समय में से अधिक जानकारी प्राप्त करने की ललक बनी रहती है। वह यह भी चाहता है कि जो सूचना जारी हो उस तक तत्काल पहुंचे।
इसलिए यह जरूरी है कि समाचार सृजन कला को युगानुरूप परिवर्तित किया जाए, संक्षिप्तीकरण हो, फालतू के भाषणों, उपदेशों और उपस्थिति मात्र दर्शाने के लिए मौजूद लोगों के नामों से यह बोझिल न हो। तभी इसकी प्रभावशीलता बनी रह सकती है। समाचारों के मामले में यह बदलाव आ गया है कि कम से कम समय में सूचना संवहित की जाए। जो कुछ हो उसकी सूचना तत्काल जारी हो जाए।
खबरों में भाषण और उपदेश औचित्यहीन
अब समाचार अपनी समाचार लेखन क्षमता के प्रकटीकरण का माध्यम नहीं रही बल्कि हर समाचार मनोवैज्ञानिक अस्त्र की तरह हो गया है जहाँ लक्ष्य समूह अर्थात जनता के सामने उतना ही परोसा जाए जो उसके लायक है। अब आदमी सूत्रात्मक संदेश और संक्षिप्त सूचनाएं चाहता है इसलिए विकसित राजस्थान के लिए सूचना तंत्र को भी आधुनिक दृष्टि से साधन सुविधा सम्पन्न तथा नवीनतम हुनर से सुसज्जित करने की आवश्यकता है।
विकसित राजस्थान के निर्माण के लिए प्रदेश में नीचे से लेकर ऊपर के स्तर तक के आदमी और व्यवस्था तंत्र को स्मार्टनेस में ढालने की आवश्यकता है। हम सभी का यही प्रयास होना चाहिए कि विकसित राजस्थान बनाने के लिए हम अपनी ओर से क्या कुछ कर सकते हैं। अपने आपको समर्पित करें और आने वाली पीढ़ियों के लिए विकसित, समस्या मुक्त और समृद्ध राजस्थान देने के लिए आगे आएं और अपनी रचनात्मक भागीदारी का स्वर्णिम इतिहास बनाएं। जय-जय राजस्थान।
–– डॉ. दीपक आचार्य