मतलब क्या सियासतदानों को
आंसू और भूख को
जो नहीं समझता है,
अपना हिस्सा खा कर भी
औरों का भी झपटता है,
ढो रहे हैं इनको देश दे दे कर जानों को,
किसी की भलाई से
मतलब क्या सियासतदानों को,
दंगा फसाद जब चाहे कराते हैं,
मुंह से केवल संवेदना जताते हैं,
जहां नहीं जरूरत वहां भी
गीत आस्था के गा रहे हैं,
तर्क और विज्ञान को धता ये बता रहे हैं,
अपने कुत्सित चालों को जनता पर थोप रहे,
मीठी कटारों से पेट सबका भोंक रहे,
देश की उन्नति से इसे नहीं कोई मतलब,
नोट इनकी पूजा और नोट ही है रब,
बचाना नहीं है जां किसी की
लाश से भर रहे खदानों को,
किसी की भलाई से
मतलब क्या सियासतदानों को,
थुलथुल हुए जा रहे हैं पसीना नहीं छूटता है,
जिसने आगे बढ़ाया इसे उसी से ये रूठता है,
एकता भाईचारा की बात नहीं करता है,
नफ़रतें फैला देता जिस गली गुजरता है,
आगे केवल बढ़ा रहे हैं
चमचों और बेईमानों को,
किसी की भलाई से
मतलब क्या सियासतदानों को।
— राजेन्द्र लाहिरी