गीत- *** ये दुनिया दीवानों की है ***
ये दुनिया है आँसू की भी ये दुनिया मुस्कानों की है.
सोच-समझकर आना साथी ये दुनिया दीवानों की है.
यहाँ सदा मस्ती का आलम
मस्ती के रिश्ते-नाते हैं.
लाख गैर हों मगर यहाँ पर
आकर अपने बन जाते हैं.
जो मस्ती में खुद को भूले ये ऐसे मस्तानों की है.
सोच-समझकर आना साथी ये दुनिया दीवानों की है.
क्या मिल जाता कभी शमा को
क्या परवाना ले लेता है.
वो तिल-तिल कर जल जाती है
वो भी जान लुटा देता है.
क्या है तुम्हें पता ये दुनिया ऐसे ही अफसानों की है.
सोच-समझकर आना साथी ये दुनिया दीवानों की है.
रहिमन कहें प्रेम की दुनिया
में बस वही निभा सकता है.
कभी जरूरत पड़ने पर जो
अपना शीश कटा सकता है.
जान हथेली पर जो रखते ये ऐसे नादानों की हैं.
सोच-समझकर आना साथी ये दुनिया दीवानों की है.
——–डाॅ.कमलेश द्विवेदी
——–मो.09415474674
बहुत अछे भाई साहिब .
बहुत खूब, डॉ साहब. आपका यह गीत भी श्रेष्ठ है.