अजनबी
अजनबी
लगता है तुमसे मिला हूँ कभी
साथ साथ तेरे चला हूँ कभी
मैं चाँद हूँ तुम हो चाँदनी
ज़मीनो आस्मा कहते है यही
किनारों सा दोनों बाँहें पसारा हूँ
उफनती हुई आज़ाओ बनकर नदी
सितारे सारे पहचान गये
मुझमे है दीवानगी वही
आँखों आँखों से बात हो गयी
कहाँ रहे अब हम दोनो अजनबी
सच्चा प्यार छुपाए छूपता नही
खामोशी बयाँ कर देती है राज सभी
किशोर कुमार खोरेंद्र
अच्छी कविता !