कविता

खिलने दो पुष्पों को…

 

तुम्हारे आंसुओ को छत पर रख आया हूँ
सुख को उतरने दो ..धुप की तरह
सीढियों से आंगन तक .
खिलने दो पुष्पों को ..तुम्हारे विश्वास के गमलों में
.रंग लो दीवारों को हरी इच्छाओ और पवित्र श्वेत -कामनाओ से ..

दुखों को धोकर तार पर सुखा दो ..टंगे रहने दो उन्हें ..बरसों तक ..
बेटे के लिए उमड़ आये प्यार को ढक कर रख दो ..कही वह ठंडा न हो जाये ..
बेटी के मायके आने से पहले ..पसंद कर लो साड़ियाँ और रंगीन चूड़ीयाँ…
अडचनों को कह दो ..अब न आये इस घर मे चींटियों की तरह झुंड मे दुबारा ..
ताकि .मीठास बनी रहे ..दाल मे नमक की तरह ..

-सहेज कर रखे रहो ..
उन बर्तनों को जिनकी आवाज ..सड़क तक न जाये …
ऐसे कुछ कपड़ें..जिनके फटने से ..शर्म को लाज न आये ..
कुछ दाल .कुछ चांवल और दो रोटियों से भी ..ज्यादा जरूरी है ..
अपने छोटे से बगीचे मे ..दूब की तरह ..हरे -हरे शब्दों को उगाना …

तुलसी की जड़ों मे पानी की तरह भर जाना .
कोई .चुराये इससे पहले ..गुलाब बच्चों को सौप देना …
घृणा …प्यार मे तब्दील न हो जाये ..तब तक पड़ोस में ठहरे रहना ..
यही तो प्राथना है और पूजा …

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

2 thoughts on “खिलने दो पुष्पों को…

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

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