कविता

सत्य

सत्य जो है सत्य रहेगा,
सरल और स्पष्ट रहेगा,
बात इतनी कि कौन क्या सोचता है,
किन बातोँ को किसका मन टकोचता है,
विकट या प्रकट, अटल या अमिट,
सत्य सत्य है,
ना केवल तथ्य है,
टूटता कुछ टूट जाए,
रुठता तो रुठ जाए,
मुख ना मोडूंगा,
मनाने किसी को सत्य ना छोडूँगा,
अविरल गति से बहता रहेगा,
सत्य सबसे कहता रहेगा,
भीरु नहीँ निर्भय करेगा,
सत्य नहीँ कभी विलय करेगा,
सत्य शुद्ध है पवित्र है प्रकाश है,
झूठ हार है, सत्य जीतने वाले की आस है,
सत्य भ्रम नहीँ ना कल्पना है,
सत्य प्राण है प्राणोँ की वंदना है।।

<<सौरभ कुमार>>

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

2 thoughts on “सत्य

  • इंतज़ार, सिडनी

    सत्य का अच्छा वर्णन ….सुंदर रचना

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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