वही खामोशी लिखा जाती हैं
पूरी उम्र
जीते रहें मुझे शब्द
पर समझ न पाया
मै उनके अर्थ
मौन ही तो हूँ मै
जो इस जहाँ में
हुआ हूँ -अभियक्त
मेरे ह्रदय में सबके लिये
प्रेम हैं …
करुणा से इसीलिए तो
द्रवित हो उठा हैं मेरा रक्त
इसीलिए तो चूभता हैं शूल सा
मुझे ..सभी का दर्द
चाहता नहीं मैं
कुछ भी कहना
परन्तु जिसे कहा नहीं जा सकता
वही खामोशी लिखा जाती हैं
मुझसे सर्व
सच्ची भाषा हैं ..
ज्ञान की उँगलियों का
मूक स्नेहिल ..स्पर्श
दीपक की लौ सा जलता रहूँ
और
तम के मन में
उजागर हो जाए ..
चाहता हूँ …स्वत: उज्जवल हर्ष
अपनी छाँव की स्लेट पर
किरणों की बूंद -बूंद अक्षरों से
जो लिखता रहा हैं वृक्ष
सपनों की कामनाओं की नींद में बेसुध
सुप्त पथिक ..
कहाँ हो पाए हैं उन्हें
पढ़ने में समर्थ
kishor kumar khorendra
वाह वाह !!
bahut dhnyvad
बहुत अच्छी कविता है .
bahut shukriya