सामाजिक

पुरुषार्थ

जिन कार्यों को करने से हमारे प्रयोजन सिद्ध होते हैं वे पुरुषार्थ कहलाते हैं। वेदादि शास्त्रों में मनुष्य के करने योग्य चार पुरुषार्थ बताए गए हैं- धर्म अर्थ, काम और मोक्ष। धर्मपूर्वक धन प्राप्त करने हेतु परिश्रम करना आर्थिक पुरुषार्थ है। ईश्वरीय सृष्टिक्रम में हमें निरन्तर कर्म करने की शिक्षा मिलती है। हम जिस पृथ्वी पर रहते हैं वह निरन्तर अपनी कक्षा में भ्रमण करती रहती है। हम जो अन्न खाते हैं, वस्त्र पहनते हैं और जिन घरों में रहते हैं वे सब अत्यन्त परिश्रम से ही प्राप्त होते हैं। हम जो विद्या प्राप्त करते हैं और धनादि पदार्थ अर्जित करते हैं वह सब उद्यमशीलता से ही प्राप्त होता है।

यजुर्वेद में कहा गसा है-‘कुर्वन्नेह कर्मणि जिजीविषेच्छतं समाः’ अर्थात् मनुष्य कर्मों को करता हुआ सौ वर्ष जीने की इच्छा करे। यह प्राणियों का स्वाभाविक धर्म है कि बिना कर्म किए हम क्षण भर भी जीवित नहीं रह सकते हैं। इस कारण से हमें कर्म अवश्य करना चाहिए। महाभारत के शान्ति पर्व में कहा गया है कि प्रारब्ध केवल बीजरूप है। किसान भूमि को जोत कर खाद डालने के बाद उसे जल से सिंचित करता हैं उसके बाद ही बीज बोने पर अन्न उत्पन्न होता है। ऐसे ही कर्मों का प्रारब्ध रूप बीज मनुष्य द्वारा परिश्रम करने पर सफलता के वृक्षरूप में बढ़ कर सुखरूप फल देता है।

इसके विपरीत आलस्य शत्रु के समान है। भर्तृहरि का कहना है-‘आलस्य हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपुः’ अर्थात् मनुष्यों के द्वारा आलस्य किया जाना उनके शरीर का महान् शत्रु है। महाभारत में कहा गया है कि यह निश्चित समझें कि जो मनष्य आलसी होगा वह कभी धनाढ्य नहीं हो सकेगा, न उसको उत्तम मित्र मिलेंगे, न ही उसे उत्तम पदार्थ मिलेंगे। यदि मिल भी गए तो शीघ्र नष्ट हो जायेंगे। आलस्य की अपेक्षा निष्फल हुआ पृरुषार्थ भी उत्तम है, पुरुषार्थी को यह संतोष रहता है कि उसने अपना कर्तव्य पूर्ण किया है। मनुष्य की दुःख से निवृत्ति और सुख को प्राप्त करने के साधन हेतु आलस्य को त्याग कर पुरुषार्थ करना चाहिए।

कृष्ण कान्त वैदिक

2 thoughts on “पुरुषार्थ

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लेख बहुत अच्छा लगा.

  • Man Mohan Kumar Arya

    मैंने कहीं पढ़ा है की संसार कि ऐसा कौन सा कार्य या मनोरथ है जो पुरुषार्थ से प्राप्त न किया जा सके? अर्थात कोई नहीं है। विद्वान लेखक ने पुरुषार्थ की सुन्दर वा सारगर्भित व्याख्या की है जो ज्ञान वृद्धि के लिए तो लाभकारी है ही साथ में इसका अनुशरण जीवन को लक्ष्यों की प्राप्ति करा सकता है। लेखक को बधाई।

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