“प्रकृति विनाशक आखिर क्यों है?”
बिस्तर गोल हुआ सर्दी का, अब गर्मी की बारी आई। आसमान से आग बरसती, त्राहिमाम् दुनियाँ चिल्लाई। उफ़ गर्मी,
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Read Moreबन्धुवर, कुछ समय पूर्व खटीमा निवासी आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी ने मेरे बाल उपन्यास “देवम बाल उपन्यास” की समीक्षा
Read Moreबन्धुवर, कुछ समय पूर्व खटीमा निवासी आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी ने मेरे काव्य-संकलन “मिटने वाली रात नहीं” की समीक्षा
Read Moreमेरे दर्द मेरे, सिर्फ मुझको वरो, क्वारी ये लगन है, सुहागन करो। मेरा मन है कहीं, और तन है कहीं।
Read Moreमैंने जाने गीत विरह के, मधुमासों की आस नहीं है,कदम-कदम पर मिली विवशता, साँसों में विश्वास नहीं है।छल से छला
Read Moreजग-मग सबकी मने दिवाली, खुशी उछालें भर-भर थाली। खील खिलौने और बताशे, खूब बजाएं बाजे ताशे। ज्योति-पर्व
Read Moreसतयुग, त्रेता, द्वापर बीता, बीता कलयुग कब का, बेटी-युग के नए दौर में, हर्षाया हर तबका। बेटी-युग में खुशी-खुशी है,
Read Moreबुरा न बोलो बोल रे.. ..आनन्द विश्वास बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा न बोलो बोल रे, वाणी में
Read More*बेटा-बेटी सभी पढ़ेंगे* …आनन्द विश्वास नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुई पुरानी। बेटी-युग के नए दौर की, आओ
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