पॉलीथिन : लघुकथा
“कल किसने देखा? यूँ ही कल की फिक्र में यह ना खाओ, पानी ना बहाओ और तो और… अब बेवकूफों
Read More“कल किसने देखा? यूँ ही कल की फिक्र में यह ना खाओ, पानी ना बहाओ और तो और… अब बेवकूफों
Read Moreसदियों पहले टकराए ग्रह कहते हैं उससे धरती बनी ! “आग का गोला” थी तब यह, फिर धीरे-धीरे शाँत हुई
Read Moreमुझको भी गर… कोई जिन्न मिल जाता, और पूछता मुझसे… मेरी अभिलाषा ! बिन सोचे उसको… मैं कह जाती, काश
Read Moreअरुण जी की दूरदर्शिता का हर कोई कायल था ! कोई भी समस्या हो, कैसी भी समस्या हो, सब का
Read Moreनाजुक सा रिश्ता, तेरा मेरा कसमों से परे, बंधनों से परे !! इक डोर है बाँधे, हम दोनों को दूर
Read Moreकभी प्राण बन कभी बाण बन बींध हृदय को जाते हैं ! ये “शब्द” बहुत कुछ कह जाते हैं !
Read Moreतेरे ख्यालों में… गुजरने लगे हैं रात और दिन तू पास हो न हो, तू संग मेरे रहता है !!
Read More