गीत : हम गीतों को लिखते-गाते हैं
बिन सोचे हम कई काम बेहोशी में कर जाते हैं. खुद-से-बेखुद पागल हम गीतों को लिखते-गाते हैं. जितनी बार सब्जियाँ
Read Moreबिन सोचे हम कई काम बेहोशी में कर जाते हैं. खुद-से-बेखुद पागल हम गीतों को लिखते-गाते हैं. जितनी बार सब्जियाँ
Read Moreनीले-नभ पर स्याह रात की चादर सा घन है. ऐसे में क्या लिखूँ आज बस रोने का मन है. कभी-कभी
Read Moreबजे जल-तरंग, सजे अंग-अंग, छाया अनंग जैसे. मन का वो हाल, तबले की ताल, बाजे मृदंग जैसे. सुख के हिंडोले,
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