Author: डॉ. अरुण कुमार निषाद

गीतिका/ग़ज़ल

कभी ख्वाबों में आती हो

कभी ख्वाबों में आती हो | कभी यादों में आती हो|| कभी बाहों में आ जाओ| मुझे यूं क्यों सताती हो || मेरा तुम गीत सुन-सुन के | उसी को गुनगुनाती हो|| थामा कर हाथ हाथों में| उसे फिर क्यों छुड़ाती हो| बड़ी प्यारी सी लगती हो | कभी जब मुस्कुराती हो|| — अरुण कुमार निषाद  

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