कविता – हाशिए का आदमी
हाशिए पर खड़ा आदमीधूप में झुलस जाता है मूक होकरक्योंकि वह सूरज के खिलाफ विद्रोह करना नहीं जानतावह हवा के
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Read Moreआदत के अनुसार शाम के वक्त मैं रोज पार्क में घूमने निकल जाता हूं । वहां कई लोग मिल जाते
Read Moreयूं तो मैं पहाड़ से था। हिमाचल के चंबा से । परंतु रोजगार के सिलसिले में रहता पठानकोट था। क्योंकि
Read Moreचंडीगढ़ के एक ओल्ड एज होम में मास्टर प्रभात को अपनी जिंदगी की शाम के यह अंधेरे गुमनाम दिन काटते
Read Moreमोहन अभी दस साल का ही था तो पिता का साया सिर से उठ गया। लाजो अभी जवान थी ।कोई
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