ग़ज़ल
लहू के दरिया बहाए थे आजादी के लिए । लाल मांओं ने लुटाए थे आजादी के लिए ।। यूं नहीं
Read Moreबरसों बाद फिर गया हूं मैं उसी जगह यहां से शुरू किया था जिंदगी का सफर एक बाईस वर्षीय युवा
Read Moreकुदरत ने कहा… रात नीले आसमान ने मुस्कुराकर कहा कितना निर्मल हो गया हूं मैं आदमी ने मुझे धूल धुएं
Read Moreगरीब की दो रोटियां का बोझ इतना भारी क्यों हो जाता है जिसे दौलत का बाजार उठा नहीं पाता ।
Read Moreकलम लड़ेगी तलवारों से और झोंपड़ दरबारों से । ठहरो , वक्त को आने तो दो फूल लड़ेंगे खारों से
Read Moreमन के बगीचे में जब जब भी मैं कविताएं लिखने जाता हूं सारे मौसम मेरे अगल-बगल मुझे कविताएं लिखते हुए
Read More