कविता – जियारत
बरसों बाद फिर गया हूं मैं उसी जगह यहां से शुरू किया था जिंदगी का सफर एक बाईस वर्षीय युवा
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Read Moreकुदरत ने कहा… रात नीले आसमान ने मुस्कुराकर कहा कितना निर्मल हो गया हूं मैं आदमी ने मुझे धूल धुएं
Read Moreगरीब की दो रोटियां का बोझ इतना भारी क्यों हो जाता है जिसे दौलत का बाजार उठा नहीं पाता ।
Read Moreकलम लड़ेगी तलवारों से और झोंपड़ दरबारों से । ठहरो , वक्त को आने तो दो फूल लड़ेंगे खारों से
Read Moreमन के बगीचे में जब जब भी मैं कविताएं लिखने जाता हूं सारे मौसम मेरे अगल-बगल मुझे कविताएं लिखते हुए
Read Moreरोज सुबह सूरज निकलता है हर शाम ढल जाता है आज फिर बीते कल में बदल जाता है । इसलिए
Read Moreचलो इस उतरती सांझ में पहाड़ की गोद में बैठ कर सिंदूरी धूप को शिखर चूमते हुए देखें । चलो
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