कुछ तो जबाब दो
जब बस्तियों में आग सुलग रही थी तो तुम क्या सोच कर प्रेम- कविताएं लिख रहे थे। जब हवाएं गर्म
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Read Moreरमेश फेसबुक देख रहा था तो किसी के अकाउंट यानी टाइमलाइन पर यह शेर पढ़ा -” समुद्र के किनारे आबादी
Read Moreहाशिए पर खड़ा आदमी धूप मे झुलस जाता है मूक होकर क्योंकि यह सूरज के खिलाफ विद्रोह करना नहीं जानता
Read Moreयह बस्तियों की गोद में बैठे दुबके हुए सन्नाटे कब उठेंगे कौन जाने … दमघोटू हवा के भीतर कब तक
Read Moreखंजर जैसे पैने लफ़्ज न रखना अपने कोष में न जाने कब चल जाएँ ये नासमझी व जोश में बरसों
Read Moreरात के दस बज गए थे। दिसंबर की ठंडी रात पहाड़ों में लोग इतनी देर तक नहीं जागते खासकर गांवों
Read Moreयहां लॉक डॉन क्या लगा पूरा लोक ही सन्नाटों से भर आया है । लोक की सारी भागदौड़ सिमट सी
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