छंद
मुश्किलों से खेलकर धूप छांव झेलकर ,हर एक पेट को ये अन्न उपजाते हैं । मिट्टी से यह सने हुए
Read Moreचलो मेरे साथ चलो सपनों के पीछे भागते हैं सपनों के पीछे भागना कोई लालची होना नहीं होता है सपनों
Read Moreजब बस्तियों में आग सुलग रही थी तो तुम क्या सोच कर प्रेम- कविताएं लिख रहे थे। जब हवाएं गर्म
Read Moreरमेश फेसबुक देख रहा था तो किसी के अकाउंट यानी टाइमलाइन पर यह शेर पढ़ा -” समुद्र के किनारे आबादी
Read Moreहाशिए पर खड़ा आदमी धूप मे झुलस जाता है मूक होकर क्योंकि यह सूरज के खिलाफ विद्रोह करना नहीं जानता
Read Moreयह बस्तियों की गोद में बैठे दुबके हुए सन्नाटे कब उठेंगे कौन जाने … दमघोटू हवा के भीतर कब तक
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