बुढ़ापे की धूप-छांव
आज़ अकेले बैठे हुए,सोचता रहा ,क्या इस शरीर और मन की में तमाम हसरतें,पूरी हो गई है,क्या ख्वाब जो देखे
Read Moreआज़ अकेले बैठे हुए,सोचता रहा ,क्या इस शरीर और मन की में तमाम हसरतें,पूरी हो गई है,क्या ख्वाब जो देखे
Read Moreदिल की गहराई से,कहीं हुई बातें,ज़ुबान की सच्चाई रिश्ते तोड़ देती है।उम्मीद में सुकून देने वाली ताकत बनकर,रहने की लगातार
Read Moreएक अनजान बने हुए लोगों को,इसकी अहमियत नहीं होती है।कुछ हमदर्दी जताते हैं,कुछ लोग इसके लिए,बस जिंदगी की खुशियां खत्म
Read Moreयही स्वाभाव है,समर्पित मन का संकल्प है,हिमालय की परिकल्पना में,सहृदय सद्भाव है। नश्वर शरीर में मौजूद,उम्मीद की किरण है।नवीन चेतना
Read Moreपा लेने की हरेक पड़ाव पर मन की बेचैनी से,ही सुकून तड़पती रही है,उम्मीद में,अवरोध की शक्ति हर वक्त बढ़ती
Read Moreयही एक कटू सत्य है,सही हकीकत है,मुश्किल वक्त में,इसकी वजह से ही,मिट्टी की बढ़ जाती ताक़त है,इससे बढ़ जाती अहमियत
Read Moreदोस्तों में बिगाड़ है तो,कोई बात नहीं,कुछ खट्टी-मीठी यादें ताजा हो जाती है।कुछ मनमुटाव हो तो वज़ह जानने की जरूरत
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