गीतिका
आजीवन जलदान किया है। कहलाती फिर भी नदिया है।। फूले – फले सदा परहित में, महकाती जग को बगिया है।
Read Moreअपने – अपने रेवड़ में खुश, भैं – भैं भेड़ें करतीं। मैं – मैं बकरा – बकरी करते, और नहीं
Read Moreरहते सूरज इतनी दूर। फिर भी दें गर्मी भरपूर।। देर नहीं पल की भी करते। अंबर में तुम नित्य विचरते।।
Read Moreशीतकाल सौगातें लाया। ठंडी ऋतु का मौसम भाया।। छोटे दिन की लंबी रातें। अगियाने पर होतीं बातें।। गरम रजाई ने
Read Moreहमारे समाज में चार की संख्या का विशेष महत्त्व है।चार धाम, चार वेद,चार वर्ण, लोकतंत्र के चार चरण (किन्तु गधा,घोड़ा
Read Moreजहाँ तक मेरी जानकारी की दूरदृष्टि जाती है,चोरी एक सदाबहार कला के रूप में विख्यात रही है। चोरियों के भी
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