गीतिका
बदल रहा है आज आदमी। बना हुआ है राज आदमी।। पड़ी हुई है सबको अपनी, क्यों परहित में खाज आदमी।
Read Moreआओ अग्निवीर बन जाएँ, भारत माँ का भार उतारें। ढूँढ़ – ढूँढ़ दुश्मन को लाएँ, गिन – गिन कर नित
Read More-1- देश प्रेम को जगा न जाति भेद में मलीन। रंच मात्र राग द्वेष के न हो कभी अधीन।। पेट
Read Moreदेश का करने को उद्धार, हमें ही बढ़ना होगा मीत। उसे ही मिलता है गल हार, शृंग पर चढ़ता पाता
Read Moreमैंने दो – दो खरहे पाले। आधे गोरे आधे काले।। घर भर में वे दौड़ लगाते। दिखते कभी कभी छिप
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