हास्य व्यंग्य

बातें बना : बात बना

आज तो ‘बात’ की बात करनी है।बात अपने बहुविध रूपों में हमें और हमारे जीवन को प्रभावित करती है।बात की मधुवात,घात किंवा लात से बच नहीं सकते। बात की जाती है,बात सुनी जाती है, बात गुनी जाती है। और तो और बात चुपड़ी भी जाती है। बात गिरती है। बात उठती है।बात मानी जाती है। कभी – कभी नहीं भी मानी जाती।बात क्या कुछ नहीं करती ! बात चलाई भी जाती है।बात नहीं भी चलाई जाती।बेबात की बात भी होती है।बात की अपनी कीमत भी होती है।बात ऊल – जलूल भी होती है।कभी फ़िजूल भी होती है। कभी अनुकूल भी होती है।बात को तूल दिया जाता है।तूल नहीं भी दिया जाता।बात भूली भी जाती है।बात छूती भी है। कोई – कोई बात लेश मात्र नहीं छूती।बात का आदि भी होता है ,अंत भी होता है। बात की गर्मी भी होती है, वसंत भी होता है।

बात करने में और बात बनाने में अंतर होता है।बहुत बड़ा अंतर होता है।बात तो सब करते हैं। दुनिया करती है।किन्तु बातें बनाना सबको नहीं आता है। बातें बनाने वाला बातों का कलाकार होता है। यह तो अभी शोध का विषय है कि बातें बनाना कला है अथवा विज्ञान ?परन्तु जो बातें बनाता है ,वह जन सामान्य से कुछ अलग ही तरह का होता है।कुछ उदाहरणों से स्पष्ट हो जाएगा कि हमारे देश और समाज में कौन-कौन बातें बनाना जानता है।जैसे : वकील,शिक्षक,प्रोफ़ेसर,धर्म गुरु, कथा वाचक, राजनेता, राजनेताओं के चमचे ,गुर्गे और अन्धानुगामी, ठग, मजमेबाज(बंदर – बंदरिया ,भालू ,साँप या जादूगर के खेल दिखाने वाले), विज्ञापन कर्ता,ट्रेन,बस,रेलवे स्टेशन,बस स्टैंड आदि में सामान बेचने वाले,दलाल, एजेंट आदि कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं ,जिनसे इनके जॉब,व्यवसाय या रोजी-रोटी चलती है।अगर ये सब बातें बनाना न जानें तो उनकी आजीविका खतरे में पड़ जाती है।

बात में से बात और उसमें से पुनः नई बात निकाल पाना कोई सहज बात नहीं है।इसके लिए भी अक्ल चाहिए कि सामने वाले को अपनी बातों से प्रभावित कर सके।उसे सम्मोहित करके अपनी इच्छानुसार चला सके।वकील अपनी तर्क रूपी बातों की बरसात से अदालत को हिला डालता है। तो शिक्षक या प्रोफेसर अपने विषय – ज्ञान की गहनता से अपने शिष्यों को अभिभूत ही कर लेता है।बात में से नई बात का उद्भव करते हुए ज्ञान – गंगा बहाता है। धर्म गुरु या कथा वाचक रस संचार के लिए नए नए दृष्टांत और कथाओं की विविधता से जनता जनार्दन की बुद्धि का परिमार्जन करता है।उनमें सरसता लाकर हृदयंगम बनाता है।जनता को मन्त्रमुग्ध कर अधिकाधिक दान -दक्षिणा पाता है।

राजनेता की तो बात ही निराली है।बातों के बिना उसकी नहीं चलने वाली रेलगाड़ी है।आश्वासन, भाषण, वायदे,नारेबाजी सब कुछ उसकी बातों की ही खूबी है। राजनेता का ही अनुसरण उसके चमचों और गुर्गों के द्वारा किया जाना अटल सिद्धांत है।वहाँ बातों से ही भैंस समेत खोया खाया जाता है। जनता को मिथ्या आश्वासन का जूस पिलाया जाता है।किसी भी प्रकार के ठग के पास बातों के ही बतासे हैं।इन्हीं से तो वह फेंकता अपनी ठगाई के पासे भी। बंदर -बंदरिया ,भालू या हाथ की सफाई के खेल दिखाने वालों के पास भीड़ इकट्ठी करने कर लिए बड़ी -बड़ी बातें हैं। उनकी डुगडुगी या बाँसुरी भी उनकी संगाती हैं।बस स्टैंडों ,रेलवे स्टेशनों,बस,ट्रेन आदि के फेरुए बेची जा रही सामग्री की ऐसी-ऐसी खूबियां गिनाते हैं कि गंजा आदमी भी कंघी खरीद लेता है।किसी भी वस्तु ,बीमा या विक्रीत वस्तु या स्थान का एजेंट या दलाल बातें बनाने का उस्ताद न हो, तो बेचारे की रोजी -रोटी कैसे चले ?

नहीं जानते हैं क्या आप ! बातों का लबालब सागर।हर उम्र में नौजवां अपना नटनागर।जो भर सकता नहीं, भरता ही है अपनी नन्हीं -सी कुलिया में गागर। किया करता है अपने भाव उजागर।वही कवि,रचनाकार,कथाका र,उपन्यासकार ,व्यंग्यकार कलाकार। जिसकी बातों से पटा पड़ा है क्या गगन,क्या भूमंडल ,क्या सागर! उसे अपने भावों और विचारों को बातों – बातों में व्यक्त करने का माँ सरस्वती ने विविध ज्ञान दिया है। कला दी है।अक्षर,शब्द, वाक्य, रस,छन्द,लय, गति ,रीति, वृत्ति ,ताल दिया है। है कोई इतना बड़ा बातूनी।जो एक- एक की करे दूनी, चौगुनी, आठ गुनी।क्या किसी ने भी साहित्यकार की ऊँचाइयों को छुआ है।ऐसा बात का धनी न कोई था ,न ही हुआ है।अपनी बात बनाने के लिए वही सर्व अग्रणी है ,अगुआ है।ये न समझें कोई कि वह खेलता बातों का जुआ है ! उसके मानस से हर क्षण भावित भावों का अमृत चुआ है।जो एक रचनकार है , वहाँ कोई नहीं पहुँचा हुआ है।

बातों की स्वचालित मशीन (दिमाग़) सबके ही पास है।परंतु बात करने और बातें बनाने में बड़ा ही भेद है।कर तो सभी लेते हैं अपने -अपने मतलब की बात ,दिन – रात। किन्तु बना नहीं सकते बातों बातों में बात। बातें करना जितनी महान कला है ,उतना महान विज्ञान भी है। वह मन से समन्वय करके जिह्वा और स्वर के उच्चारण के माध्यम से बातें बाहर लाता है अथवा लेखनी किंवा कुंजी पटल की कुंजियों से लिख कर बतलाता है। बात – बात का मतलब समझाता है। बात के मूल में छिपे रहस्य को जतलाता है। बातों में लुभाकर बातों में आकर गंजा अनावश्यक होने के बावजूद कंघी ले आता है। बाद में विचार करता है तो उसे बातों का राज समझ में आता है। किंतु अब क्या ?कंघी विक्रेता तो अपनी बात बनाकर चला जाता है।बातों का चमत्कार दिखा जाता है।

— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040