प्रबोध -मंजरी
-1- न देश का विचार है,विचार जाति-पाँति का। गुबार ही गुबार है,नहीं सुनीति – रीति का।। विनाश काल सामने,न देखता
Read More-1- न देश का विचार है,विचार जाति-पाँति का। गुबार ही गुबार है,नहीं सुनीति – रीति का।। विनाश काल सामने,न देखता
Read Moreहमको इंद्रधनुष अति भाता। पावस के अम्बर में आता।। सात रंग का धनुष इंद्र का। बैंगन जैसा रँग है चहका।।
Read Moreसावन आया घेवर लाया। मुँह में मेरे पानी आया।। जाते जब बाजार पिताजी। लेने घर – सामग्री भाजी।। मैंने घेवर
Read Moreछप्पक छैया ! छप्पक छैया। चलो बाग में खेलें भैया।। देखो बादल बरस रहे हैं। नाले – नाली खूब बहे
Read Moreपरम् सौभाग्य का विषय है कि जब हमने इस दुनिया की धरती पर पदार्पण किया और कुछ करने के योग्य
Read Moreआओ अग्निवीर बन जाएँ, भारत माँ का भार उतारें। ढूँढ़ – ढूँढ़ दुश्मन को लाएँ, गिन – गिन कर नित
Read More-1- देश प्रेम को जगा न जाति भेद में मलीन। रंच मात्र राग द्वेष के न हो कभी अधीन।। पेट
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